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फास

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बावरापन नहीं अकेलापन बहुत कुछ आ जाने से बावरा होना लाज़मी हो जाता हैं।मानव के इस बावरेपन को एक पेड़ के जरिये सीचते हैं।मिट्टी मे जड़े धसा दिया, जमीन से सबकुछ ले लिया।आसमान को इस आश से निहारता रहा एक बूंद पनी के लिए।खुद को इतना हरा किया नई कोपलों के साथ कली फूल से फल बनाया।फूल-फल दोनों चले गए शहर की बाज

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