मै जानू नागर लिखने की कोशिश करता हूँ। कई बुकों व पत्रिकाओ मे लिखा हैं। मै लिखता इस वजह से हूँ कि आम जनता की आवाज के साथ अपनी अभिब्यक्ति को उन्ही के बीच लिखित मे रख सकू।
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गोल दुनियां गोल, चांद गोल, सूरज गोल। रोटी गोल, गेंद कांच की गोली गोल। बिंदिया, पायल, बाला, चूड़ियां गोल। सिक्का गोल, जुबान संभाल के बोल। गोल गोल सब कहे गायब कहे न कोय। गोल,गायब,कुछ पाने की इच्छा
गाँव सूना, गालियां सूनी सड़क सूनी थी। । गाँव के पेड़ पौधे खेत तालाब तबेले सब छुपे थे। दूर से आती कार ट्रकों की लाल पीली लाइटे थी। धुंध में पानी की फुहार, पत्तों में टपक रही थी। धुंध की चादर में
राजनीति के समन्दर में, बुल्डोजर से आशियाने टूटे, तो गुल मच जाये। बसे नाते रिश्ते टूटे, किसी को समझ ना आये। चुनाव आते ही, नेता सबरे भोजन खाने जाये। वही पर, आशियाना बनाने के ख्वाब दिखाये। सरकार ही
लूटे तो बहुत, जंगली जानवरों के भेष में, लूटे गये। खूंखार आदिमानव के रूप में, लपेटे गये। चोर, उचक्कों, डाकूओं से डराया गया हमे। जेबकतरों, चाकूबाजी, गन से अछूते नहीं। मिलकर अपने बहुरूपियों ने छोड़ा
एक मत देश हमारा आजकल चर्चों के चर्चे हो रहे, गुरुद्वारों में गुरुवाणी। मंदिर मस्जिद विध्वंश हो रहे, यह कलयुग की निशानी। जाति पाति में भिड़े पड़े है, एक दूजे के सामने सीना ताने। नहीं सुरक्षित को
ठंड आई। ठंडा में खूब अंडा का खाई। लै कंडा लकड़ी कौड़ा सुलगाई। भूंज आलू का चटनी से खाई। छील शकरकंद दूध मट्ठा से खाई। ठंडा में खूब घी का खाई। गुड, गजक, रामदाना की पट्टी खाई। काजू पिसता छुहारा बाद
शब्द। आ गये जो शब्द ज़ुबान में, मन के धागे से पिरोया जायेगा। गये वह अगर सोशल मीडियां में, कही न कही उन्हें पढ़ा जायेगा। धूम मचाएंगे बसकर ज़हन में, किसी वक्त जुबा से निकाला जायेगा। होगी उनकी चर्
धोखा चढ़ा गैस चूल्हे में पतीला, तेल मसाला जला डाला। पड़ोसन दौड़ कार आई। पूछा जानू क्या बना डाला? सवा किलो मुर्गा बना डाला। वह झिझकी बोली मार डाला। दो चार पीस हमको भी देना। टहल मारकर वापस चली ग
हमरा बड़ा गांव निराला। सुबह शाम धनकुट्टी की पकपक शोर मचाती। शहर गांव को जोड़ने वाली गणेश टैंपो आती। ले पानी नाला बड़ी नहर से बम्बी तक जाता। उड़ती चारों ओर सांझ गोधूल चरवाहा आता। दौड़ते भागते गांव
शरद ऋतु। शरद ऋतु में घर आंगन आग दहकती। धुंआ बना रास्ता आसमान तक जाता। छोटे बड़े पेड़ पौधों को खूब पोषण देता। साथ ओस के घास फूस पेड़ पत्ते नहाते। नई कोपलों कलियों में तितलियां इठलाती। ओढ़ जूट की