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मै जानू नागर लिखने की कोशिश करता हूँ। कई बुकों व पत्रिकाओ मे लिखा हैं। मै लिखता इस वजह से हूँ कि आम जनता की आवाज के साथ अपनी अभिब्यक्ति को उन्ही के बीच लिखित मे रख सकू।

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वह नहीं दिखते।

5 नवम्बर 2024
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वह नहीं दिखते। बदलते मौसम की रवानगी, अपने साथ अपनी जरूरत की समाने साथ लेकर आते। पीने के लिए ओस की बूंद, नहाने के लिए हिमपात, ओढ़ने के लिए कुहासे की चादर, कभी वह अपने अस्त और उदय के समय में बदलाव गढ़

न खिड़कियों से झांको, न कुंडीयां खड़काओ।

29 सितम्बर 2024
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न खिड़कियों से झांको, न कुंडीयां खड़काओ। है कामयाबी का हुस्न जहन में, कलम पकड़ लो। तोड़ दो उन बंदिशों को, तुम्हें गुमराह करती हों। रच डालो, कोरे कागज़ो को, नीली दवातों से। अधीन सत्ता के गुलामों को

बदरंग इमारत।

29 अप्रैल 2024
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बदरंग इमारत। चारो तरफ से घिरी दीवार उसके अंदर तीन कमरों के साथ चौड़ा लंबा बरामदा। बरामदे से सटे बाथरूम और ट्वायलेट,सब में दरवाजे लगे हुए। यह जगह की पहली ठोस पहचान थी, इस जगह में नमकीन पानी देने वाला

डंक की चुभन

24 अप्रैल 2024
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डंक की चुभन पानी की तासीर पाने के लिए, छत, घनौची, गली में रखे पानी से भरे ड्रम, गैलन, बोतल, मटका, बाल्टी, जग, ग्लास, कलशा, सुराही टब आदि। मौसम की गर्म हवा, हरी कोपले वाली टहनियों से टकरा कर पत्तियों

काया

15 अप्रैल 2024
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काया बचपन, घुटवन चलय। चलए सीना तान, जवानी। झुक जाए, बुढ़ापा जात। ये सब, सुख दुःख के साथी। यह सब मन ह्रदय बसे। जानू, ये उमरियां बीती जाय...

झगड़ा ख़त्म।

8 अप्रैल 2024
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झगड़ा ख़त्म।   रातों की नींद में दखल देना चारों की आदत थी।गली के दोनो छोर में उनके घर अभी भी है। शैम्पी और कल्लो पूर्व दिशा संभालते, पश्चिम दिशा टफी और जुल्फी वह सब घर में सोते खाते रहते खेलते। इन चा

ये कैसा मौसम है!

6 मार्च 2024
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ये कैसा मौसम है! मच्छरों की धुन संग बदन में सुई चुभोते, घर में पंखा चलता। ला तूफान बवंडर से, झुका पेड़ो को झटपट रंग बदलते,आंख गर्म, गाल रूखे, होठ सूखे कर जाते। मन में प्यास बढ़ाकर, तन को ढीला कर ज

एक साथ खाने का वक्त कहां?

31 जनवरी 2024
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एक साथ खाने का वक्त कहां? आधुनिकता के दौर में वास्तविकता गायब होती जा रही है। कमआमदनी में जीने वाले लोग अपना ज्यादा समय जुगड़ में ही निकाल देते है। न ही जुगाड काम आता है और न ही वह आधुनिकता का भरपूर

शब्द जलते नही।

6 जनवरी 2024
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शब्द जलते नही। हाड़ कपाती ठंड, कोहरे की चादर ओढ़े प्रकृति, कंबल में लिपटा बुढ़ापा, टोपे से कान छिपाता बचपन, पतले साल में लिपटी महिला, मोटी जैकेट पहने पुरुष, सिगरेट से खींचा गया धुआं युवा के लबों को स

हाथों की सिलवटे

31 दिसम्बर 2023
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हाथों की सिलवटे शर्दी से कापते हाथ। दियासलाई को थामे हुए। दियासलाई से सीका निकाल कर, उसमे रगड़ते हुए एक हल्की लौ के साथ कागज में आग लगा दी। इस कागज में छपे शब्द जलने लगे।अब उसे बिना छूए पढ़ सकते थे।

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