shabd-logo

common.aboutWriter

मै जानू नागर लिखने की कोशिश करता हूँ। कई बुकों व पत्रिकाओ मे लिखा हैं। मै लिखता इस वजह से हूँ कि आम जनता की आवाज के साथ अपनी अभिब्यक्ति को उन्ही के बीच लिखित मे रख सकू।

no-certificate
common.noAwardFound

common.books_of

common.kelekh

ठंड आई।

18 दिसम्बर 2024
0
0

ठंड आई। ठंडा में खूब अंडा का खाई। लै कंडा लकड़ी कौड़ा सुलगाई। भूंज आलू का चटनी से खाई। छील शकरकंद दूध मट्ठा से खाई। ठंडा में खूब घी का खाई। गुड, गजक, रामदाना की पट्टी खाई। काजू पिसता छुहारा बाद

शब्द।

25 नवम्बर 2024
0
0

शब्द। आ गये जो शब्द ज़ुबान में, मन के धागे से पिरोया जायेगा। गये वह अगर सोशल मीडियां में, कही न कही उन्हें पढ़ा जायेगा। धूम मचाएंगे बसकर ज़हन में, किसी वक्त जुबा से निकाला जायेगा। होगी उनकी चर्

धोखा

22 नवम्बर 2024
0
0

धोखा चढ़ा गैस चूल्हे में पतीला, तेल मसाला जला डाला। पड़ोसन दौड़ कार आई। पूछा जानू क्या बना डाला? सवा किलो मुर्गा बना डाला। वह झिझकी बोली मार डाला। दो चार पीस हमको भी देना। टहल मारकर वापस चली ग

हमरा बड़ा गांव निराला।

20 नवम्बर 2024
0
0

हमरा बड़ा गांव निराला। सुबह शाम धनकुट्टी की पकपक शोर मचाती। शहर गांव को जोड़ने वाली गणेश टैंपो आती। ले पानी नाला बड़ी नहर से बम्बी तक जाता। उड़ती चारों ओर सांझ गोधूल चरवाहा आता। दौड़ते भागते गांव

शरद ऋतु।

19 नवम्बर 2024
0
0

शरद ऋतु। शरद ऋतु में घर आंगन आग दहकती। धुंआ बना रास्ता आसमान तक जाता। छोटे बड़े पेड़ पौधों को खूब पोषण देता। साथ ओस के घास फूस पेड़ पत्ते नहाते। नई कोपलों कलियों में तितलियां इठलाती। ओढ़ जूट की

वह नहीं दिखते।

5 नवम्बर 2024
0
0

वह नहीं दिखते। बदलते मौसम की रवानगी, अपने साथ अपनी जरूरत की समाने साथ लेकर आते। पीने के लिए ओस की बूंद, नहाने के लिए हिमपात, ओढ़ने के लिए कुहासे की चादर, कभी वह अपने अस्त और उदय के समय में बदलाव गढ़

न खिड़कियों से झांको, न कुंडीयां खड़काओ।

29 सितम्बर 2024
0
0

न खिड़कियों से झांको, न कुंडीयां खड़काओ। है कामयाबी का हुस्न जहन में, कलम पकड़ लो। तोड़ दो उन बंदिशों को, तुम्हें गुमराह करती हों। रच डालो, कोरे कागज़ो को, नीली दवातों से। अधीन सत्ता के गुलामों को

बदरंग इमारत।

29 अप्रैल 2024
0
0

बदरंग इमारत। चारो तरफ से घिरी दीवार उसके अंदर तीन कमरों के साथ चौड़ा लंबा बरामदा। बरामदे से सटे बाथरूम और ट्वायलेट,सब में दरवाजे लगे हुए। यह जगह की पहली ठोस पहचान थी, इस जगह में नमकीन पानी देने वाला

डंक की चुभन

24 अप्रैल 2024
1
1

डंक की चुभन पानी की तासीर पाने के लिए, छत, घनौची, गली में रखे पानी से भरे ड्रम, गैलन, बोतल, मटका, बाल्टी, जग, ग्लास, कलशा, सुराही टब आदि। मौसम की गर्म हवा, हरी कोपले वाली टहनियों से टकरा कर पत्तियों

काया

15 अप्रैल 2024
0
0

काया बचपन, घुटवन चलय। चलए सीना तान, जवानी। झुक जाए, बुढ़ापा जात। ये सब, सुख दुःख के साथी। यह सब मन ह्रदय बसे। जानू, ये उमरियां बीती जाय...

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए