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फर्श

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खड़ी है दिवारें बिन छत के हैं घर । रात अंधेरी सुबह की तलाश में है घर। नींव गहरी, टूटा फर्श बेहतर अर्श के इंतजार में है। दो कच्चे कांधे, दो दीह का बोझ संभाले, ढूंढते हैं संग दिल वर, जहां मिलें उन्हें खुशियों भरा कल। बेचैन रातें, टूटी नींद मां को सोने नहीं देती, ज़मीन कोरी, खुला आसमान छाया नहीं छत की

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