अब तेरी खुमारी में रहता हूं।
अब दर्द भी दिल में रखता हूं।
क्या ऐसी मेरी जिंदगानी है।
अब गम की कहानी लिखता हूं।
क्या होश रहा न अब तक मुझको।
अब तेरा फसाना पढ़ता हूं।
दिल में उठी उन आहूं को।
अब मेरा ये गम कुछ कहता है।
सुना है मैंने कुछ लोगों से।
अब दिल की जुबां भी पढ़ता हूं।
पूछा है ज़माने वालों ने ऐसा क्यों।
अब मन से तराना गाता हूं।
अब तेरी खुमारी में रहता हूं।
अब दर्द भी दिल में रखता हूं।
फैजान खैराबादी