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घनाक्षरी

8 नवम्बर 2021

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घनाक्षरी

भींगें  बदन तरुणी  तरणी चढ़ ताल में ,

केश को झटक रही चाँद छिप जात है।

रात का तिमिर भी निराश होय सिर धुने ,

पूर्णिमा का चाँद है कि अप्सरा की गात है।

अंग प्रति अंग से जो रौशनी छिटक रही ,

मानो कि अँजोर जर्रे - जर्रे में समात है ।

चलती जो थम- थम पैजन बाजे झनन ,

हिय में   हिलोर उठे ठुमरी   सुनात है ।

….. सतीश मापतपुरी

3
रचनाएँ
क्षितिज
5.0
क्षितिज छंद आधारित रचनाओं का संग्रह है। इसमें संग्रहित सभी रचनाएँ मानवीय मूल्यों तथा जीवन के विभिन्न आयामों पर प्रकाश डालती हैं।

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