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कभी लगता है सच उजाला नहीं सच अँधेरा है , चारोँ ओर इसका बसेरा है . फिर कभी सच ,बिजली सा कौंधता सोच को झकझोरता है .पूर्णता कैसी ! एक खालीपन भरा हुआये अँधेरा और खालीपन भी सच के करीब लगते हैं .