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शाहकार ( मास्टर पीस)

29 जुलाई 2022

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 शाहकार 
(मास्टर पीस) 

देखता था ग़ौर से इक पेन्टर का शाहकार। 
इक हसीना का बदन जिस पर नहीं था एक तार।। 

पेन्टर के बुर्श ने कुछ ऐसे दिखलाये कमाल। 
केनवस पर जैसे ज़िन्दा हो गये थे ख़द ओ ख़ाल।। 

जम गयी थी मेरी उस तस्वीर पर जाकर निगाह। 
जिस की पतते से छुपाई पेन्टर ने शर्मगाह।। 

घूरते तस्वीर को देखा तो बीवी ने कहा। 
हश्र तक भी हल न होगा आप का ये मसअला।। 

बेशकीमत वक्त ज़ाय आप करते हैं यहां। 
ये बहार ऐसी नहीं है जो हो मोहताजे ख़िज़ां।। 

आप का बिगड़ा मुकद्दर ऐसे फिर सकता नहीं। 
तेज़ तर आंधी से भी पतता ये गिर सकता नहीं।। 

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