धुन : ऐ मेरे वतन के लोगो ज़रा आंख में भरलो पानी
पैरोडी
ये कुर्सी चिपकू नेता करें देश से बेईमानी।
जो शहीद हुए थे उन की नहीं याद रही कुर्बानी।।
लंदन पेरिस में पढ़ते, नेता अफसर के बच्चे।
स्कूल नहीं जा पाते लेकिन नोकर के बच्चे।।
जनता मरती है भूखों, नेता खाये बिरयानी।
जो शहीद हुए थे उन की नहीं याद रही कुर्बानी।
वीरों की शहादत को भी वोटों में बदल लेते हैं।
सरहद पर बहते खूं को नोटों में बदल लेते हैं। ।
सम्मान शहीदों का भी नेता न करें अभिमानी।
जो शहीद हुए थे उन की नहीं याद रही कुर्बानी।।
अब धर्म है नेताओं का हर काम में रिशवत खोरी।
रिशवत लेने देने में है सब की इक स्टोरी। ।
ताबूत हों या हों तोपें है सब की यही कहानी।
जो शहीद हुए थे उन की नहीं याद रही कुरबानी।
है कलम बड़ा कुर्सी से जो जनता का हित साधे।
हैं राज्य सभा के मिमबर जो पत्रकार हैं आधे। ।
सत्ता की करते दलाली पेशे की कद्र न जानी।
जो शहीद हुए थे उन की नहीं याद रही कुर्बानी
सिंदधांतों आदर्शो को कहते हो राग पुराना।
बस सुरा सुंदरी को ही है तुमने सब कुछ जाना।
कयों अपने पूर्वजों की कुछ तुमने कद्र न जानी।
जो शहीद हुए थे उन नहीं याद रही कुर्बानी।
कोई सिख कोई जाट मराठा कोई गोरखा कोई मदरासी।
कोई हिंदू है कोई मुस्लिम नहीं कोई भारत वासी।
होती मेरे हिंदुस्तां में इक क़ौम तो हिंदुस्तानी ।
जो शहीद हुए थे उन नहीं याद रही कुर्बानी।
कब तक आखिर लूटेगा यह पाप घड़ा फूटेगा।
जागेगी ये सोई जनता फिर तुझ पे कहर टूटेगा।
है वक्त अभी भी संभल जा है तुझ पर आफत आनी।
जो शहीद हुए थे उन की नहीं याद रही कुर्बानी।