उर्दू हास्य मुक्तक
ये ईडी को और आईटी को भगावे।
कमल छाप साबुन से जो भी नहावे।।
लगा क़त्ल का या इस्मतदरी का।
नज़र दाग़ दामन पे कोई न आवे।
झूठ को सच मानने वाले हैं असली देश भग्त।
अब हुकूमत की है सारी लूट जीएसटी फ्री।।
है विधायक की खरीदारी पे स्पेशल रिबेट।
टेक्स सच्ची बात पर झूठ जीएसटी फ्री।।
वो हैं हक़दार रस मलाई के।
जो बुरों को बुरा नहीं कहते।।
जेल जाने से हम भी डरते हैं।
हम गधों को गधा नहीं कहते।।
जाने ये मोजिज़ा हुआ कैसे।
अक़्ल अब तक समझ नहीं पाई।।
साथ देखा मुझे पड़ोसन के ।
बीवी तस्वीर से निकल आई ।।
ये बालों की सफेदी भी नहीं सिम्बल बुढ़ापे का।
उखड़ जाने से बत्तीसी कोई बूढ़ा नहीं होता।।
अकेले रात में मिलने से शौहर को सहेली से।
बुढ़ापा ये है बीवी को कोई खतरा नहीं होता।।
कभी ये नगर कभी वो नगर कभी ये सफर कभी वो सफर।
यहां कोन आता है बाद में कभी घर की सुध भी लिया करो।।
न करीम खां की तुम्हें ख़बर न सलीम खां पे रखो नज़र।
पढ़ो तीस रोज़ मुशायरे किसी रोज़ घर भी रहा करो।।