कभी आह से जब झरी होगी कविता,
उसे व्याकरण फिर मिला कैसे होगा ;
खुशी ग़र कभी छू लिया हो चरम को,
तो कविता में गिनती जड़ा कैसे होगा;
किसी माँ की जब कोख अर्थी पे होगी,
गहन वेदना शब्द बिखरे तो होंगे;
कहीं टूटी हों चूड़ियाँ पति के शव पर,
हृदय चीर लय लफ़्ज निकले तो होंगे;
कहीं प्रिय बिछड़ने की दाहक तपिश में,
विरह गीत अंकुर तो फूटा ही होगा;
कहाँ ख्याल उसको बहर यति तुकों का,
कभी ना कभी दिल तो टूटा ही होगा;
चली होगी कविता जो दिल से तड़प कर,
गणित की विधाओं में खोई न होगी;
छलक कर बहा होगा भावों का सागर,
किसी अंक खातिर तो रोई न होगी;
मगर कौन हैं वो, जो साँचे में कविता
बिठाने की कोशिश किए जा रहे हैं;
बिना आत्मा अस्थिपंजर को गिनते,
जमाने को धोखे दिए जा रहे हैं;
बड़े से बड़ा व्याकरण का खिलाड़ी,
किसी कवि हृदय तक तो पहुंचा न होगा;
सजायेगा कैसे वो सरगम की वेदी,
जहाँ गीत जीवन में जन्मा न होगा;
विरह पीर खुशियों के संगीत अपने,
तो अभिव्यक्ति का गुरु कोई कैसे होगा;
सुनो बस वही जो हृदय गीत गाये,
सिखाया हुआ कवि कोई कैसे होगा;
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