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हे भगवान कविता में गिनती !

2 नवम्बर 2021

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कभी आह से जब झरी होगी कविता,

उसे व्याकरण फिर मिला कैसे होगा ;

खुशी ग़र कभी छू लिया हो चरम को,

तो कविता में गिनती जड़ा कैसे होगा;


किसी माँ की जब कोख अर्थी पे होगी,

गहन वेदना शब्द बिखरे तो होंगे;

कहीं टूटी हों चूड़ियाँ पति के शव पर,

हृदय चीर लय लफ़्ज निकले तो होंगे;


कहीं प्रिय बिछड़ने की दाहक तपिश में,

विरह गीत अंकुर तो फूटा ही होगा;

कहाँ ख्याल उसको बहर यति तुकों का,

कभी ना कभी दिल तो टूटा ही होगा;


चली होगी कविता जो दिल से तड़प कर,

गणित की विधाओं में खोई न होगी;

छलक कर बहा होगा भावों का सागर,

किसी अंक खातिर तो रोई न होगी;


मगर कौन हैं वो, जो साँचे में कविता

बिठाने की कोशिश किए जा रहे हैं;

बिना आत्मा अस्थिपंजर को गिनते,

जमाने को धोखे दिए जा रहे हैं;


बड़े से बड़ा व्याकरण का खिलाड़ी, 

किसी कवि हृदय तक तो पहुंचा न होगा;

सजायेगा कैसे वो सरगम की वेदी,

जहाँ गीत जीवन में जन्मा न होगा;


विरह पीर खुशियों के संगीत अपने,

तो अभिव्यक्ति का गुरु कोई  कैसे होगा;

सुनो बस वही जो हृदय गीत गाये,

सिखाया हुआ कवि कोई कैसे होगा;

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