जब-जब अधर्म का शासन चरम चढ़ेगा
धरती पर मानव शोषण पाप बढ़ेगा
दुर्जनता चढ़कर आर्य भूमि खेलेगी
सज्जन समाज पथ पीड़ायें ठेलेगी
तब-तब लूँगा आकार भारती भू पर
डूबते सिन्धु में धर्म सेतु बन भूधर
करता प्रशस्त सज्जन समाज पथ राहें
हरता समस्त मर्मान्तक मनुज कराहें
दनुजों पर भीषण घोर प्रहार करूँगा
जन मन समाज पीड़ा उत्ताप हरूँगा
युग-युग से योगेश्वर वाणी का गुंजन
जीवंत हो उठा ईश शीश सिंहासन
अगणित भुज रक्षित खुली भारती गोदी
दिल्ली सिंहासन उदय हुआ रवि मोदी
हर अंश-अंश के साथ शम्भु पग वंदन
कर गहे डोर निज हाथ भारती स्यंदन
उठता प्रणम्य अस्तित्व जगत ने देखा
जाज्वल्यमान अम्बर पट दैविक रेखा
आसुरी शक्ति का शमन निरन्तर जारी
कंटकाकीर्ण तरु वृन्त काटती आरी
आँधी प्रचंड ईश्वर तरंग घहराती
ढहती लोलुप अपभ्रंश भित्ति भहराती
पाला बदले देवत्व मनुज जो जागे
टकराकर होंगे नष्ट विनष्ट अभागे
ईसा नानक गौतम की ऊष्मक गोदी
श्रीकृष्ण राम पग चिह्नों पर पथ मोदी
मन्दिर मस्जिद गिरजाघर सी फलती लौ
आलोकित करती विश्व क्षितिज जलती लौ
जन मन पीड़ा से पीड़ित कर्म दिगम्बर
जो स्वार्थ रहित किरदार बनी पैगम्बर
सेनापति बनकर भगवत्ता जब आई
देवत्व शक्ति ली मानव में अंगड़ाई
सज्जन सज्जनता से तलवार उठाते
दुर्जन सज्जन बन वाल्मीकि हो जाते
विस्वास डोर हनुमान पूँछ बन जाती
आसुरी शक्ति क्रन्दन करती पछताती
नाशिका सुपर्णा लखन बान ने भेदा
स्वर्णिम निगाह शनि दृष्टि राख कर छेदा
परमाणु अस्त्र की छत्र आसुरी सेना
आ रही ग्रहण बन भारत समझ चबेना
देवत्व सुदृढ़ कंधों का पाकर आश्रय
मटकी फूटेगी हर पापों की निश्चय
दुश्मन देशों की मात्र नहीं किस्मत फूटेंगी
परिजन दुर्योधन की भी जंघायें टूटेंगी
कुबेर मिश्रा