उठे गिरा सितार से, जो शब्द झूम-झूम कर,
चली हमारी हिन्दी भाषा,लब अनेक चूम कर;
बढ़ी मलय प्रवात सी, कली-कली चहक उठी,
मधुर जुबान थाप श्रुति, गली-गली महक उठी;
मही प्रदीप्त ज्योति सी, उजास भूमि भारती,
अथाह शब्द सिन्धु से, वसुंधरा लहक उठी;
कहन सुरम्य वाटिका, तो शब्द पुष्प की हँसी,
छुये बहार जन हृदय, उमंग घूम-घूम कर;
अनन्त शब्द कोष, व्याकरण सटीक वीथियाँ,
झरे जो स्वाति बूँद सी, बदन अपेक सीपियाँ;
रगों में बन लहू, धड़क रही हमारी देह में,
प्रणम्य हिंदी भाष्यलिपि,प्रणम्य शुभ्र रीतियाँ;
अनेक भाषा भाषी, जाम हिन्दी का जो पी गये,
नशा न फिर उतर सके नशे में ऐसा चूर कर;
मिला जो प्यार से कोई, सुधा सदृश बरष गयी,
कहीं गुमान से मिला, तो मान सब करष गयी,
कहानी बन के चल पड़ी,जो लेखकों को छू लिया,
मिली जो कवि हृदय से, छंद-छंद बन हरष गयी;
उड़ी जो पर पसार, सिन्धु सात पार तक बढ़ी,
गले मिले कुबेर, अन्य भाषा भाषी चूम कर;