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स्वाधीनता की प्रथम मशाल

31 अक्टूबर 2021

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भारतवर्ष का इतिहास और उसकी सनातन संस्कृति विश्व में सबसे प्राचीन संस्कृतियों में से एक है। जिसका गौरवशाली इतिहास अनेकों स्वाभिमानी   महान योद्धाओं के कंधों पर टिका हुआ है। मुगल आक्रान्ताओं से पूर्व चन्द्र गुप्त एवं सम्राट अशोक ने उस सनातन संस्कृति को एक नया आयाम  दिया था। सम्राट अशोक ने तो अपनी समृद्धिशाली संस्कृति को असीम भू भाग तक रोपित किया था।

परन्तु सम्राट अशोक के बाद उस विरासत को बचाये रखने के लिए अनगिनत योद्धाओं ने बलिदान दिए लेकिन धीरे-धीरे उसका क्षरण जारी रहा। शक्तिशाली  मुगलों ने उस सनातन संस्कृति को पूरी तरह से नष्ट करने के लिए अपनी सारी शक्ति झोंक दी थी और वे कामयाब भी होते रहे और पूरी तरह से कामयाब भी हो जाते परन्तु उसी समय एक ऐसे नायक का उदय हुआ जो अजेय था। वह था महाराणा प्रताप । जिसका अदम्य साहस और शौर्य उस सनातन संस्कृति के लिए संजीवनी बन गया ।

यह वह कालखंड था जब आधे से अधिक सनातन संस्कृति नष्ट हो चुकी थी मजबूरी में इस्लामिक संस्कृति को स्वीकार करती जा रही थी। अपनी संस्कृति को बचाये रखने के लिए अनगिनत योद्धा सिर पर कफन बाँधे मुगलों के आगे चट्टान की तरह डटे हुए थे। मुगल अपनी सारी शक्ति झोंकने के बाद भी समूची संस्कृति को मिटा नहीं पा रहे थे तो उसका कारण था अपनी संस्कृति बचाने वाले तत्कालीन योद्धाओं का अदम्य साहस और जोश। आखिर मुगलों को अपनी रणनीति बदलनी पड़ी। संस्कृति पर प्रहार की बजाय अपने शासन के अधीन समूचे भारतवर्ष को लाने का प्रयास उन्होंने शुरू किया और इसमें उन्हें सफलता भी तेजी से प्राप्त होने लगी। मगर उसी समय उनके सामने सबसे बड़े अवरोध के रूप में चेतक असवार महाराणा प्रताप का भाला विशाल पर्वत की तरह ऐसा गड़ा कि जिसने मुगलों के समूचे भारत पर शासन करने के स्वप्न पर पानी फेर दिया।

उस समय यदि राणा प्रताप नें मुगलों की अधीनता स्वीकार कर ली होती तब शायद आज सनातन संस्कृति किसी कोने में दम तोड़ती हुयी सिसक रही होती। क्योंकि सम्पूर्ण भारतवर्ष पर मुगलों का साम्राज्य स्थापित हो जाता। इस्लाम संस्कृति के साथ वह विचारधारा भी पुनः जागृत हो जाती जो या तो अपनी संस्कृति अपनाने के लिए मजबूर करती है या फिर अन्य को नष्ट कर देती है। इतिहास मात्र जीत को ही अपने साथ लेकर चलता है फिर चाहे वह जीत अपराध प्रतिकारी हो या अपराधिक। इस्लामिक ईसाइयत आदि का भ्रम रहा है कि हम दुनिया में अपनी सांस्कृतिक संख्या बढ़ाकर ही सुरक्षित रह सकते हैं एवं दुनिया पर शासन कर सकते हैं। परन्तु सनातन संस्कृति नें कभी संख्या बल को महत्व नहीं दिया बल्कि अपराध प्रतिकारक जोशीले योद्धाओं को महत्व दिया जो अपने अदम्य साहस एवं शौर्य के द्वारा उस प्राचीन विरासत को अपने कंधों पर ढोते रहे हैं और विजय का वरण भी किया है।

मुगलों से सम्मान पूर्ण समझौते के बाद देश में समरसता की नींव पड़ी। परन्तु कुछ समय बाद भारतवर्ष पर अंग्रेजों की कुटिल दृष्टि पड़ी जो स्वाभिमान की बजाय छल कपट द्वारा पीठ में खंजर घोंपने में महारत हासिल रखती थी। व्यापार के साथ उनका पदार्पण हुआ। विलासिता का लोभ दिखाकर  भारतीय समाज को ऊँच नीच में बदलने में वे सफल हो गये। जो मुकाम मुगल वीरता के द्वारा कभी प्राप्त नहीं कर पाये थे वह मुकाम अंग्रेजों ने छल कपट के द्वारा सहज ही प्राप्त कर लिया। अंग्रेजों के द्वारा सनातन एवं इस्लाम दोनों संस्कृतियां दमित हो रही थी इसलिए देश की आजादी के लिए दोनों कंधे से कंधे मिलाये और आजादी हासिल भी कर ली। परन्तु अंग्रेजों ने आजाद करने से पहले उस इस्लामिक कट्टरता वादी विचारधारा को चिंगारी दिखाकर प्रज्वलित कर दिया जिसके परिणामस्वरूप  लाखों देशवासी कट मरे। इस्लाम की उस पुरानी विचारधारा ने फिर से अपने शबाब पर पहुंच अपना अलग दायरा खींच लिया।

सनातन संस्कृति में वह विचारधारा ही कभी नहीं रही जो अन्य संस्कृतियों से द्वेष करती हो अथवा संख्या बल के हिसाब से अपने शौर्य का आकलन करती हो। इसलिए सदियों से बने इस्लाम के साथ सौहार्द को बड़ी सहजता से स्वीकार कर लिया । वह अपने साहस और शौर्य के दम पर शक्तियां हासिल करता रहा केवल अपराध प्रतिकारक के रूप में और अनन्त काल से मजबूती के साथ आज तक खड़ा भी है। आज दुनिया में अनेकों इस्लामिक राष्ट्र हैं जो उदारवादी छवि विकसित कर चुके हैं परन्तु इस्लाम में वह विचारधारा भी मौजूद है जो अन्य संस्कृति को नष्ट करने का निरन्तर प्रयास करती रहती है और सदा ही करती रहेगी। इस सच्चाई से मुख नहीं मोड़ा जा सकता कि समय और अनुकूल परिस्थिति  प्राप्त करते ही वह अंकुरण वृक्ष का स्वरूप नहीं ले लेगा। इसके लिए इस्लामिक संस्कृति के उस उदारवादी घड़े को भी पूर्ण सजग रहने की आवश्यकता है कि उनके आसपास पास अंकुरित होती उस विचारधारा को सिंचित होने से बचाने के लिए सदैव तत्पर रहना चाहिए ।

सनातन संस्कृति अंग्रेजों के  छल कपट के जाल से अभी तक मुक्त नहीं हो पायी है । पहले भी एक वर्ग अपनी उस सनातन संस्कृति को नष्ट करने में सदा सहायक की भूमिका में रहा था और आज भी है। सनातन संस्कृति तो नष्ट नहीं हुई मगर नष्ट करने में सहायक बनने वाला वर्ग पानी के बुलबुले की तरह उठता और विलीन होता रहा है और होता रहेगा। इतिहास के पन्ने उन्हें कब के छांट चुके हैं। महाराणा प्रताप के द्वारा जलायी हुयी स्वतंत्रता और स्वाभिमान की मशाल अभी भी जल रही है ।मशाल थामने वाले हाथ बदलते रहे हैं मगर आज भी प्रज्वलित मशाल वही है। ऐसे महान योद्धा और स्वतंत्रता सेनानी पर समूचे भारतवर्ष को गर्व है तथा उस प्रज्वलित मशाल को थामने वाले नामी एवं गुमनाम सभी स्वाधीनता सेनानी हमारे आदर्श हैं वंदनीय व पूजनीय हैं।।

Kuber Mishra

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Pragya pandey

Pragya pandey

बहुत सुंदर और उत्कृष्ट लेख लिखा है आपने सर ..... हमारी संस्कृति को बचाए रखने वाले उन सभी महान विभूतियों को कोटि कोटि नमन है 🙏🙏🙏🙏 आज के समय में हमें भी इस पावन कर्म में अपना एक छोटा योगदान अवश्य देना चाहिए क्योंकि ये हम सभी का कर्तव्य है 🙏🙏🙏🙏🙏🙏

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