अनेकों को लिखता देख मेरे मन में उठा ख्याल, मैं भी लिखूं कुछ ऐसा जिस पर उठे सवाल।
फिर चाहे उस पर होता रहे हैं जितना बवाल ,
सोचा कविता को शीर्षक क्या दूँ, क्यों ना इस कविता का नाम अपना ही रख दूँ।
कविता में विषय रखूं भ्रष्टाचार या नारी पर क्यों हो रहे भयंकर अत्याचार
बैठ कर मैंने किया इतना विचार फिर दिमाग में आया बढ़ता हिंदी का प्रचार
हिंदी हमारी मातृभाषा है फैले ये जग में सारे यही मेरी अभिलाषा है आजकल सभी को है पैसा कमाना
फिर चाहे पड़े हिंदी को ठुकराना हिंदी को सबने किया पराया लेकिन बाद में मनुष्य है बहुत पछताया,
आखिर हिंदी से नफरत क्यों नमस्कार की जगह हाय हेलो क्यों?
हिंदी से ही ज्ञान मिला है गौरव और सम्मान मिला है
संविधान की भाषा हिंदी है
भारत माता के मस्तक की बिंदी हिंदी है
अपनी भाषा से मुंह ना मोड़ो
सारी दुनिया को इससे जोड़ों
हिंदी भाषा देती ज्ञान
हिंदी भाषा है महान