shabd-logo

निर्धनता नहीं सरकार की यह खामोशी मार देती है

26 अप्रैल 2020

565 बार देखा गया 565
featured image

article-image




घायल मेरे मन की आशा

मन में व्याप्त भरी निराशा

क्यों चुप है सत्ता में बैठी सरकारें

नहीं सुनाई देती क्या निर्धनों के चीख पुकारे।


हर बार बात तो करते हैं ये अर्थव्यवस्था ठीक हो जाएगी

लेकिन के यह क्या जाने इनकी बातों से नहीं होगा कुछ

निर्धनों की रोटियां तक छिन जाएंगी।


धर्म की राजनीति में उलझ गई दुनिया है।

अब किसी को क्या पड़ी है कितने निर्धन जिंदा है।

बस एक आंकड़ा जारी कर देंगे हम सारी विपदा को हर लेंगे।

यह तो बस इन नेताओं की मायाजाली दुनिया है।


यह निर्धनता गरीबों के आंसुओं की आग है

कुछ भी कहो यह देश पर गहरा काला दाग है।


कालाहांडी का वह दृश्य हमें सत्य बतलाता है

जहां हर दिन भुखमरी से एक गरीब मर जाता है।

हर एक नेता उस दृश्य को देखने तो जाता है

किंतु इस समस्या पर कुछ करना नहीं चाहता है।


अब निर्धनों की आवाज इनको क्यों सुनाई देगी भला यह तथ्य पर जीते हैं और मरने की गिनती करते हैं

बस अपना काम बन जाए यही है इनके काम करने की कला

फिर गरीब निर्धन को अब यह पूछेंगे क्यों भला


इन ऊंचे दरबारों से मैं आज निवेदन करती हूँ।

इस आशा में रोती इनकी आंखें रूह अभी तक जिंदा है

लेकिन क्यों निर्धनता से जूझ रहा भारत बस शर्मिंदा है।

मैं काले धन के लेखे-जोखे का आवेदन करती हूं

मैं आज इन्ही पंक्तियों से ऐसा भेदन करती हूं।


क्यों एकदम अचानक से गरीबी बढ़ जाती है

वह सोते-सोते गरीब की मां भयानक मौत मर जाती है।

मैं हूं गरीब इसलिए रोज इस जहर का सेवन करती हूं।


संसद में क्यों बैठे मौन साधकर सरकारों के सब नेता है

मुझे आज सत्ता का चाबुक कमजोर दिखाई देता है

यह मौसम काले धन का क्यों आदमखोर दिखाई देता है

आज मुझको भारत का भविष्य खतरे में दिखाई देता है।

इसकी कोई फिक्र नहीं कि कितने इंसा जिंदा है

चोरी चोरी कह लो या चुपके चुपके सच में यह तो दो नंबर का धंधा है


डर क्यों है नाम बताओ शामिल है जो उनका इतिहास बताओ

कौन है यह खातेदार या तो कोष तुम्हारे हैं या ये रिश्तेदार तुम्हारे हैं।

अरे! चुप क्यों बैठे हो सत्ता के दावेदारों

खामोशी अब यह बताती है

यह सब नातेदार तुम्हारे हैं।

ये सब नातेदार तुम्हारें हैं



नीतू टिटाण की अन्य किताबें

11
रचनाएँ
कुछ तो छिपा रहे हो...😀
5.0
कुछ चीजें अनुभव से भी परे होती हैं। कभी-कभी अनुभव की ये पोटली गलत भी साबित हो जाती है। जिन चीजों का अनुभव भी नहीं उन्हीं यादों के अधूरे पन्नो को कविताओं के रूप में लाने का एक प्रयास !
1

निर्धनता नहीं सरकार की यह खामोशी मार देती है

26 अप्रैल 2020
3
2
0

घायल मेरे मन की आशा मन में व्याप्त भरी निराशा क्यों चुप है सत्ता में बैठी सरकारेंनहीं सुनाई देती क्या निर्धनों के चीख पुकारे। हर बार बात तो करते हैं ये अर्थव्यवस्था ठीक हो जाएगी लेकिन के यह क्या जाने इनकी बातों से नहीं होगा कुछ निर्धनों

2

हिंदी

14 सितम्बर 2020
2
1
0

अनेकों को लिखता देख मेरे मन में उठा ख्याल, मैं भी लिखूं कुछ ऐसा जिस पर उठे सवाल। फिर चाहे उस पर होता रहे हैं जितना बवाल , सोचा कविता को शीर्षक क्या दूँ, क्यों ना इस कविता का नाम अपना ही रख दूँ। कविता में

3

जिंदगी धूल हो गई

18 सितम्बर 2020
0
4
2

छोटे तो सब अच्छा था बड़े होकर जैसे भूल हो गईपहले खेलते थे मिट्टी से जनाब लेकिन अब तो जिंदगी ही धूल हो गई कोई डांट देता था तो झट से रो जाया करते थे फिर पापा मम्मी के सहला देने से तो आराम से सो जाया करते थे अब कोई डांट दे तो रोते नहीं अब आराम से सोते नहीं दोस्तों अब तो

4

क्यों हर्जाना भरती है?

2 अक्टूबर 2020
1
0
0

कूड़े के ढेर तले दबी मेरी मां धरती है बिन कसूर यह हरदम क्यों हर्जाना भरती है ?जो देश कभी हुआ करता था सोने की चिड़िया वो बना आज गंदगी का सरताज है जिन चीजों से होता है कचरा क्यों आज हम उन्हीं चीजों के मोहताज है इस मनुष्य के कृत्य से, यह धरती पल-पल मरती है बिन कसूर यह हर

5

मौत से मिलना पड़ेगा..

2 अक्टूबर 2020
0
1
1

माना कि दुनिया मतलबी है तुझे ही अब आदत को बदलना पड़ेगामौत जब तुझको आवाज देगी,तो उससे भी दोस्त मिलना पड़ेगा ॥इस काली रात के बाद होगा सवेरा हौसला तो रख मिटेगा एक दिन अंधेरापाँव फूलों पे रखने से पहलेतुझको काँटों से गुजरना पड़ेगामाना कि दुन

6

शर्मनाक! क्यों सुरक्षित नहीं बेटियां ??

9 जून 2021
0
0
0

शर्मनाक! क्यों सुरक्षित नहीं बेटियां ??मूर्ख! पत्थर की मूरत की रोज उतारते हो आरती पर देश में अपनी बेटी की हालत देख रो रही माँ भारती!!रोज कोई न कोई देवी स्वरूपा जंग जिंदगी की हारती...द्रौपदी की खिंच रही है अब भी साड़ी वो कृष्ण को पुकारती.

7

तुम बेनाम हो...

13 जून 2021
0
1
1

ये नजरें अभी भी ढूंढती है तुम्हेंफर्क इतना है कि पहले हकीकत थे तुम, अब याद होदिल अब भी प्यार करता है तुम्हेंपहले नाम था रिश्ता का अब मेरी जिंदगी में तुम बेनाम हो...

8

चैनल ही बदल दीजिए

7 जुलाई 2021
0
0
0

जी लीजिये अपनी जिंदगी न किसी की परवाह कीजिएउसूल है जिंदगी का एक हाथ लीजिए एक हाथ दीजिए सनसनी खबर सी चल रही हो गर जिंदगी लेकर उसूलों का रिमोट चैनल ही बदल लीजिएठीक है तुम जीत गए हम हार मान गएजानते नहीं थे ज्यादा तुम्हें पर अब तो पहचान गएन अब हमें इस तरह सार्वजनिक ताना दीजिएलेकर उसूलों का रिमोट चैनल ही

9

समझा क्या है आपने

7 जुलाई 2021
0
0
0

बस नाराज होने तक का हक दिया आपनेउसमें भी खुद मान जाने को कह दिया आपनेइतनी अकड़ है किस बात की...अरे ! हम भी इंसान हैं हमें समझा क्या है आपनेबस आपकी चले ये वो राह नहीं है...कोई पकड़ के झटक दे ये वो बांह नहीं हैईमान-धर्म आप देखो, बात बढ़ाई थी आपनेअरे ! हम भी इंसान हैं हमें समझा क्या है आपनेसुना है आपने हम

10

सब समझ आता है...

5 अगस्त 2021
1
1
1

सब समझ आता है...मैं भी इंसान हूँ मुझे सब समझ आता है बस मन ये बावरा भावनाओं में बह जाता है कभी तुझे याद करके तो कभी बात करके इन आँखों से शांत सी बूंदों का कहर बाहर आता है प्यारी से तेरी मुस्कान और हाथ पकड़ साथ चलना हमें भी अच्छा लगता था तेरा बात-बात पर मचलना आंखे जो बंद करूं तो वो बीता मंजर नजर आता ह

11

इंसानियत जानते हों?

11 अगस्त 2021
2
0
0

इंसाफ की बात वहीं करें जो इंसाफ करना जानते हो...आरोपों के बाद इल्ज़ाम वहीं लगाए जो खुद आरोपी न हो...आवाज़ वहीं उठाएं जो किसी की आवाज़ दबाते न हो..किसी को असफल वहीं बताएं जो खुद एक बार भी प्रयास करते हो...सलाह वहीं दें जो सलाह कभी मानते हो... अनुभव वही बताएं जो दूसरे के अनुभव को भी जानते हों... जानवर वह

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए