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निर्धनता नहीं सरकार की यह खामोशी मार देती है

26 अप्रैल 2020

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घायल मेरे मन की आशा

मन में व्याप्त भरी निराशा

क्यों चुप है सत्ता में बैठी सरकारें

नहीं सुनाई देती क्या निर्धनों के चीख पुकारे।


हर बार बात तो करते हैं ये अर्थव्यवस्था ठीक हो जाएगी

लेकिन के यह क्या जाने इनकी बातों से नहीं होगा कुछ

निर्धनों की रोटियां तक छिन जाएंगी।


धर्म की राजनीति में उलझ गई दुनिया है।

अब किसी को क्या पड़ी है कितने निर्धन जिंदा है।

बस एक आंकड़ा जारी कर देंगे हम सारी विपदा को हर लेंगे।

यह तो बस इन नेताओं की मायाजाली दुनिया है।


यह निर्धनता गरीबों के आंसुओं की आग है

कुछ भी कहो यह देश पर गहरा काला दाग है।


कालाहांडी का वह दृश्य हमें सत्य बतलाता है

जहां हर दिन भुखमरी से एक गरीब मर जाता है।

हर एक नेता उस दृश्य को देखने तो जाता है

किंतु इस समस्या पर कुछ करना नहीं चाहता है।


अब निर्धनों की आवाज इनको क्यों सुनाई देगी भला यह तथ्य पर जीते हैं और मरने की गिनती करते हैं

बस अपना काम बन जाए यही है इनके काम करने की कला

फिर गरीब निर्धन को अब यह पूछेंगे क्यों भला


इन ऊंचे दरबारों से मैं आज निवेदन करती हूँ।

इस आशा में रोती इनकी आंखें रूह अभी तक जिंदा है

लेकिन क्यों निर्धनता से जूझ रहा भारत बस शर्मिंदा है।

मैं काले धन के लेखे-जोखे का आवेदन करती हूं

मैं आज इन्ही पंक्तियों से ऐसा भेदन करती हूं।


क्यों एकदम अचानक से गरीबी बढ़ जाती है

वह सोते-सोते गरीब की मां भयानक मौत मर जाती है।

मैं हूं गरीब इसलिए रोज इस जहर का सेवन करती हूं।


संसद में क्यों बैठे मौन साधकर सरकारों के सब नेता है

मुझे आज सत्ता का चाबुक कमजोर दिखाई देता है

यह मौसम काले धन का क्यों आदमखोर दिखाई देता है

आज मुझको भारत का भविष्य खतरे में दिखाई देता है।

इसकी कोई फिक्र नहीं कि कितने इंसा जिंदा है

चोरी चोरी कह लो या चुपके चुपके सच में यह तो दो नंबर का धंधा है


डर क्यों है नाम बताओ शामिल है जो उनका इतिहास बताओ

कौन है यह खातेदार या तो कोष तुम्हारे हैं या ये रिश्तेदार तुम्हारे हैं।

अरे! चुप क्यों बैठे हो सत्ता के दावेदारों

खामोशी अब यह बताती है

यह सब नातेदार तुम्हारे हैं।

ये सब नातेदार तुम्हारें हैं



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रचनाएँ
कुछ तो छिपा रहे हो...😀
5.0
कुछ चीजें अनुभव से भी परे होती हैं। कभी-कभी अनुभव की ये पोटली गलत भी साबित हो जाती है। जिन चीजों का अनुभव भी नहीं उन्हीं यादों के अधूरे पन्नो को कविताओं के रूप में लाने का एक प्रयास !
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26 अप्रैल 2020
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घायल मेरे मन की आशा मन में व्याप्त भरी निराशा क्यों चुप है सत्ता में बैठी सरकारेंनहीं सुनाई देती क्या निर्धनों के चीख पुकारे। हर बार बात तो करते हैं ये अर्थव्यवस्था ठीक हो जाएगी लेकिन के यह क्या जाने इनकी बातों से नहीं होगा कुछ निर्धनों

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हिंदी

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