2 अक्टूबर 2020
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कुछ भी बुरा या अच्छा नहीं होता हमारी सोच उसे अच्छा या बुरा बना देती है D
बहुत अच्छी रचनाएँ हैं |
3 अक्टूबर 2020
घायल मेरे मन की आशा मन में व्याप्त भरी निराशा क्यों चुप है सत्ता में बैठी सरकारेंनहीं सुनाई देती क्या निर्धनों के चीख पुकारे। हर बार बात तो करते हैं ये अर्थव्यवस्था ठीक हो जाएगी लेकिन के यह क्या जाने इनकी बातों से नहीं होगा कुछ निर्धनों
अनेकों को लिखता देख मेरे मन में उठा ख्याल, मैं भी लिखूं कुछ ऐसा जिस पर उठे सवाल। फिर चाहे उस पर होता रहे हैं जितना बवाल , सोचा कविता को शीर्षक क्या दूँ, क्यों ना इस कविता का नाम अपना ही रख दूँ। कविता में
छोटे तो सब अच्छा था बड़े होकर जैसे भूल हो गईपहले खेलते थे मिट्टी से जनाब लेकिन अब तो जिंदगी ही धूल हो गई कोई डांट देता था तो झट से रो जाया करते थे फिर पापा मम्मी के सहला देने से तो आराम से सो जाया करते थे अब कोई डांट दे तो रोते नहीं अब आराम से सोते नहीं दोस्तों अब तो
कूड़े के ढेर तले दबी मेरी मां धरती है बिन कसूर यह हरदम क्यों हर्जाना भरती है ?जो देश कभी हुआ करता था सोने की चिड़िया वो बना आज गंदगी का सरताज है जिन चीजों से होता है कचरा क्यों आज हम उन्हीं चीजों के मोहताज है इस मनुष्य के कृत्य से, यह धरती पल-पल मरती है बिन कसूर यह हर
माना कि दुनिया मतलबी है तुझे ही अब आदत को बदलना पड़ेगामौत जब तुझको आवाज देगी,तो उससे भी दोस्त मिलना पड़ेगा ॥इस काली रात के बाद होगा सवेरा हौसला तो रख मिटेगा एक दिन अंधेरापाँव फूलों पे रखने से पहलेतुझको काँटों से गुजरना पड़ेगामाना कि दुन
शर्मनाक! क्यों सुरक्षित नहीं बेटियां ??मूर्ख! पत्थर की मूरत की रोज उतारते हो आरती पर देश में अपनी बेटी की हालत देख रो रही माँ भारती!!रोज कोई न कोई देवी स्वरूपा जंग जिंदगी की हारती...द्रौपदी की खिंच रही है अब भी साड़ी वो कृष्ण को पुकारती.
ये नजरें अभी भी ढूंढती है तुम्हेंफर्क इतना है कि पहले हकीकत थे तुम, अब याद होदिल अब भी प्यार करता है तुम्हेंपहले नाम था रिश्ता का अब मेरी जिंदगी में तुम बेनाम हो...
जी लीजिये अपनी जिंदगी न किसी की परवाह कीजिएउसूल है जिंदगी का एक हाथ लीजिए एक हाथ दीजिए सनसनी खबर सी चल रही हो गर जिंदगी लेकर उसूलों का रिमोट चैनल ही बदल लीजिएठीक है तुम जीत गए हम हार मान गएजानते नहीं थे ज्यादा तुम्हें पर अब तो पहचान गएन अब हमें इस तरह सार्वजनिक ताना दीजिएलेकर उसूलों का रिमोट चैनल ही
बस नाराज होने तक का हक दिया आपनेउसमें भी खुद मान जाने को कह दिया आपनेइतनी अकड़ है किस बात की...अरे ! हम भी इंसान हैं हमें समझा क्या है आपनेबस आपकी चले ये वो राह नहीं है...कोई पकड़ के झटक दे ये वो बांह नहीं हैईमान-धर्म आप देखो, बात बढ़ाई थी आपनेअरे ! हम भी इंसान हैं हमें समझा क्या है आपनेसुना है आपने हम
सब समझ आता है...मैं भी इंसान हूँ मुझे सब समझ आता है बस मन ये बावरा भावनाओं में बह जाता है कभी तुझे याद करके तो कभी बात करके इन आँखों से शांत सी बूंदों का कहर बाहर आता है प्यारी से तेरी मुस्कान और हाथ पकड़ साथ चलना हमें भी अच्छा लगता था तेरा बात-बात पर मचलना आंखे जो बंद करूं तो वो बीता मंजर नजर आता ह
इंसाफ की बात वहीं करें जो इंसाफ करना जानते हो...आरोपों के बाद इल्ज़ाम वहीं लगाए जो खुद आरोपी न हो...आवाज़ वहीं उठाएं जो किसी की आवाज़ दबाते न हो..किसी को असफल वहीं बताएं जो खुद एक बार भी प्रयास करते हो...सलाह वहीं दें जो सलाह कभी मानते हो... अनुभव वही बताएं जो दूसरे के अनुभव को भी जानते हों... जानवर वह