[ ] एक दिन हल सिंह अपने आंगन में बैठा चाय पी रहा है। और उसकी पत्नी नास्ता लेकर आती है जिसमें जलेबी और कचौड़ियां रखी हुई है जलेबी कचौड़ियों को देखकर हल सिंह को खुश जाता है और खुश होकर अपनी पत्नी से कहता हैं " जब सुबह-सुबह छुट्टी वाले दिन जलेबी भी और कचौड़ियों का नाश्ता मिल जाता है तो मजा आ जाता है ऐसा लगता है सारे जहां की खुशियां एक साथ आ गयी हैं " कचौड़ियों को खाने लगता है तभी पत्नी आ जाती है और मुंह बनाकर कहती है " जब सारी खुशियां पेट में चली जाए तो चक्की पर जाकर आटा पीसवा लाना" हल सिंह कहता है" अरे मेरे प्राणहरनी यानी मेरी प्यारी पत्नी जब मैं नाश्ता करता हूं तो कुछ मत बोला कर नास्ते का मजा ख़राब हो जाता हैं और आटा नहीं पिस्ता गेहूं पीसते हैं " हल सिंह की पत्नी मुँह को बनकर कहती है "ठीक है ठीक है मेरे पतिदेव जी गेहूं पिसवा लाना जी " हल सिंह से पत्नी की बात सुनते सुनते रहे नाश्ता करता जाता है नाश्ते के बाद खड़ा होता है पत्नी अंदर से क्योंकि गेहूं की बोरी ले आती है हल सिंह बोर को उठाने को होता है =================================== दूसरा सीन तभी एक आवाज लगती है आवाज दरवाजा खटखटाना की होती है हल सिंह बोरी को छोड़कर गेट खोलने चला जाता है। गेट खुलता है तो देखा है सामने दो आदमी खड़े हुए हैं जिसमें एक आदमी बुजुर्ग है और एक आदमी जवान है जवान आदमी हल सिंह को देखकर पैर छूने लगता है हल सिंह आशीर्वाद देता है" खुश रहो अपने माता-पिता का हमेशा ख्याल रखो" अभी बुजुर्ग आदमी हल सिंह से कहता है" बेटा राधे -राधे " हल सिंह हाथ जोड़कर कहता है "अरे राधे राधे बाबू जी क्या हो गया कैसे आए क्या परेशानी है कोई क्या? बुजुर्ग आदमी चेहरे पर उदासी ला कर कहता है "हल सिंह बेटा परेशानी हैं तभी तो मैं तुम्हारे पास आया हूं" हल सिंह दोनों को कुर्सी पर बैठने के लिए कह देता है हल सिंह भी कुर्सी पर बैठ जाता है दोनों लोग भी कुर्सी पर बैठ जाते हैं हल सिंह कहता है "बाबूजी बताएं क्या बात है" बुजुर्ग कहता है बेटा बात ऐसी है कि हम जहां पर रहते हैं हमारे पड़ोस में एक सेठ जी भी रहते हैं मेरी पत्नी की तबीयत खराब होने की वजह से मेरे बेटे अजय ने सेठ जी से ₹50000 उधार ले लिए सेठ जी ने देते समय कहा था "बेटा तुम मेरे पड़ोसी हो मैं तुमसे ब्याज नहीं लूंगा " पर मेरे अजय बेटे ने कहा "नहीं सेठ जी आप जो पैसा देंगे उनकी मैं सरकारी ब्याज के हिसाब से आपको ब्याज दे दूंगा" इस बात पर सेठ जी बोले जैसी तुम्हारी मर्जी तो बेटा यह लोग कागज जिस पर साइन कर दो मेरे बेटे में जल्दबाजी में उस पर हस्ताक्षर कर दिये और ₹50000 लाकर मुझे दे दिए हैं उन पैसों से मैंने अपनी पत्नी का इलाज कराया सेठ जी की रकम देने के लिए मेरा बेटा शहर चला गया वहां पर मजदूरी करके ₹50000 और ब्याज के पैसे कमा कर लाया जब सेठ जी को देने गया तो सेठ जी ने कहा "तुमको 10% मासिक की दर से ब्याज देनी होगी " मेरे बेटे ने कहा "पर हमारी आपकी तो सरकारी ब्याज अनुसार ब्याज देने की तय हुई थी" सेठ जी ने अपनी अलमारी में से कागज निकला "कहा ये देखों कागज पर 10% मासिक लिख रहा है जिस पर तुमने हस्ताक्षर किए थे" उनकी बात कर से सुनकर हल सिंह ने अजय से कहा" तुमने जब साइन किए थे उसे कागज को क्यों नहीं पड़ा क्या तुम पढ़े-लिखे नहीं हो" यह सुनकर वह जवान लड़का बोला" भाई साहब मेरी माँ तबीयत ज्यादा खराब थी और यह मेरे पड़ोस में रहते हैं इसलिए मैंने विश्वास करके साइन कर दिए थे" तभी बुजुर्ग बोल "बेटा सेठ जी ने धमकी और दिया यदि तुमने 1 महीने में मुझे पैसे नहीं दिए तो मैं तुम्हारा मकान पर कब्ज़ा कर लूँगा क्योंकि उसमें तुमने हस्ताक्षर करें उसमें लिखा है यदि तुमने ब्याज की रकम नहीं दी तो मकान तुम हमें दे दोगे" इस पर हल सिंह बोले "तो मेरे मेरे पास आने की क्या आवश्यकता है पुलिस में जाकर शिकायत कर दो पुलिस पकड़ कर ले जाएगी" बुजुर्ग हाथ जोड़कर बोल बेटा "वह बात तो सही है यदि पुलिस पकड़ ले जाएगी तो पड़ोसी होने के नाते आगे से कोई पड़ोसी किसी पड़ोसी पर विश्वास नहीं करेगा और सारे गांव भी बदनाम होगा" इसका हल सिंह हंसकर बोला " आप किस मिट्टी के बने इंसान हो आप का पड़ोसी आपका मकान हथियाना चाहता है और आप अपने पड़ोसी की बदनामी भी नहीं चाहते हैं आप किसी जमाने में जी रहे हैं " इस बात पर बुजुर्ग हंस के कहता है" बेटा हमारे जमाने में तो पड़ोसी, पड़ोसी का परिवार का होता था उसका मान सम्मान अपना मान सम्मान होता था सेठ जी के पिताजी बहुत अच्छे थे पड़ोसियों की बहुत मदद करते थे पर जाने बेटे में कहां से इतना लालच आ गया है " इस बात पर हल सिंह हंस के कहता है" बाबूजी पैसा ही ऐसी चीज है अच्छे-अच्छे का रंग बदल देता है बाबूजी आप चिंता मत करो मैं ऐसा हल करुँगा आपका पड़ोसी भी बच जाएगा और आपकी रकम भी वापस हो जाएगी और दोनों परिवारों में से किसी की बदनामी भी नहीं होगी और उसको सबक भी मिल जाएगा ताकि इस तरह की हरकत वह किसी और के साथ ना करें" हल सिंह की बात सुनकर बुजुर्ग की आंखों में आंसू आ जाते हैं और हाथ जोड़कर कहते हैं:" बेटा सुबह में मंदिर में गया प्रार्थना करने तो पंडित जी कथा में कह रहे थे भगवान इंसानों की मदद करने के लिये अपने सेवक धरती पर भेज देते हैं और लग रहा है कि पंडित जी के कहे हुए शब्द बिल्कुल सही हो रहे हैं " हल सिंह अपनी कुर्सी से खड़ा हो जाता है और हाथ जोड़कर कहता है "बाबू जी आप मेरी इतनी तारीफ ना करें एक दूसरे की मदद करना हम सब की जिम्मेदारी है बस थोड़ा जुगाड़ करके लोगों की मदद कर देता हूं और लोगों की समस्या को हल करने में ऊपर वाला मेरा संग देते हैं " इस बात पर बुजुर्ग का लड़का अजय हल सिंह के पैर छूता है हल सिंह से रोक कर कहते हैं "बेटा मेरे पैर छूने की इतनी जरूरत नहीं है तुम बहुत अच्छी लड़के हो जो अपनी माता-पिता की सेवा कर रहे हो अब आराम से घर जाओ बाकी का काम मैं खुद कर लूंगा" हल सिंह गांव और सेठ जी का नाम /पता सब पूछ कर लिख लेता है दोनों हाथ जोड़कर हल सिंह के घर से निकल जाते हैं हल सिंह की पत्नी दूर खड़े होकर घूरने लगती है इस पर हल सिंह हंस कर कहता है" ऐसे ना घूर मेरी प्राणहरनी यानी मेरी पत्नी मैं अभी तेरे गेहूं को पिसवा लाता हूं" हल सिंह की पत्नी अपना घूंघट संभालती को कहती है "अरे अभी क्यों जा रहे हो अभी तो पूरे गांव की समस्या हल ही जाना " पत्नी का गुस्सा देखकर हल सिंह गेहूं लेकर तुरंत चक्की पर आटा पीसबाने के लिए चल देते हैं चक्की पर पहुंच कर हल सिंह अपने चेले कलुआ सिंह को फोन करते हैं और फोन पर कुछ समझते हैं कलुआ सिंह उनकी बात सुनता है ========तीसरा सीन ================== सेठ जी अपने मकान में बैठे हैं बाहर चबूतरे पर दो आदमी आकर बैठ जाते हैं दोनों आपस में बातचीत कर रहे हैं सेठ जी की नजर उन पर पड़ती है वही से बैठे-बैठे उनकी बातें सुनते हैं एक आदमी दूसरे आदमी से कहता है "अरे भाई आज मैं बहुत परेशान हूं मुझे पैसों की सख्त जरूरत है " दूसरा आदमी कहता है" भाई तुझे इतने पैसों की क्यों जरूरत है क्या समस्या आ गई" पहला आदमी कहता है " भाई कलुआ क्या बताऊं तुझे मुझे लोन के ₹100000 चुकाने हैं और कल तक का समय है यदि नहीं चुकाया तो बैंक वाले मेरे मकान की कुर्की कर लेंगे मैं बड़ा परेशान हूं " कलुआ जवाब देता है " परेशानी की तो बात है पर सूखा भाई तुझे ₹100000 कौन देगा " सुखा कलुआ की तरफ देखकर कहता है" इसी बात की तो परेशानी है कोई मेरा मकान ले ले चाहें 10 परसेंट की ब्याज हो या 20% की पर पैसे मुझे दे दे और 1 साल के बाद उसका पैसा उसे चुका दूंगा और यदि न चुका पाऊं तो मेरे मकान पर कब्जा कर ले" कलुआ सूखा की तरफ देख कहता है "पर मकान तो तुम्हारा बहुत महंगा है " सुखा जवाब देता है "अरे उसको को बनवाने के लिए ही तो लोन लिया था सारा लोन चुका दिया बस एक लाख रुपये रह गया है" दोनों की बातों को सेठ जी बड़े गौर से सुन रहे हैं सेठ जी के मन में ब्याज का लालच आ गया है वह कुर्सी से उठकर बाहर चबूतरे पर जाते हैं सेठ जी को देखकर दोनों उठकर खड़े हो जाते हैं और राम-राम करते हैं सेठ जी उनकी राम-राम को सुनकर कहते हैं "अरे कहां के रहने वाले हो या कर क्या बातें कर रहे हो" सूखा का कहता है "अरे सेठ जी तुम पहचानते नहीं हो हम तो तुम्हारे गांव के किनारे पर ही रहते हैं जो लाल रंग का पक्का मकान बना हुआ है मकान मेरा है " सेठ जी को मकान याद आता है जो बहुत अच्छा बना हुआ है अरे हां वह गांव किनारे लाल रंग का जो मकान बना बड़ा अच्छा बना हुआ क्या तुम्हारा ही है" तुरंत कलुआ कहता है "हां सेठ जी मकान इनका ही हैं " सेठ जी लालच में बोलते हैं " मैं कैसे मालूम मकान तुम्हारा है" इस सूखा तुरंत कहता है "चलो सेठ जी मैं तुमको अपना मकान दिखा कर लाता हूं" तीनों एक साथ मकान की ओर चलने लगते हैं =================================== चौथा सीन
[ ] =================================== तीनों मकान पर पहुंच जाते हैं सेठ जी मकान को देखते हैं आंखों में और लालच आ जाता है सूखा और कलुआ मकान में अंदर ले जाते हैं सूखा अंदर आवाज देता है सूखा की पत्नी आकर चाय लेकर आती है तीनों बैठकर चाय पीते हैं चाय पीने के बाद सेठ जी सूखा से कहते हैं "₹100000 मैं तुझको दे सकता हूं पर शर्त यही है कि 10% की ब्याज लूंगा और यदि 1 साल में नहीं चुका पाया तो यह मकान मेरा हो जाएगा " सेठ जी की बात सुनकर सूखा कहता है "ठीक है सेठ जी आप 1 साल के लिए मुझे ₹100000 दे दो और यदि मैं नहीं चुका पाया तो मकान आपका हो जाएगा" इस बात पर सेठ जी खुश होकर कहते हैं "तो ठीक है शाम को घर पर आ जाना पैसे ले जाना और एक कागज पर साइन करने पड़ेंगे" सुखा हाथ जोड़कर कहता है "ठीक है सेठ जी मैं शाम को ₹100000 ले जाऊंगा और आप जहाँ चाहें मेरे साइन करा लेना " यह कहकर सेठ जी वहां से चले जाते हैं सेठ जी के जाते ही कलुआ बहुत तेज हॅसने लगता है कलुआ को हंसते देखकर सूखा कहता है" अरे भाई कलुआ क्यों इतनी तेज हंस रहा है" कलुआ हंसते हुए कहता है "मुझे हंसी इस बात पर आ रही है सेठ जी सूखा यानी हल सिंह जी की बातों में फंस गए हैं अब बेचारे सेठ जी का क्या होगा" इस बात पर हल सिंह भी हंसने लगता है और मेकअप उतर कर कहता है" कलुआ अभी काम पूरा नहीं हुआ है सेठ जी को शाम को सबक भी तो देना है " फिर हल सिंह अपना मोबाइल निकाल कर अजय को फोन करते हैं फिर फोन पर कुछ समझता है उधर अजय हल सिंह की पूरी बात को सुनता है फिर हल सिंह मोबाइल को रख देता है हल सिंह कलुआ को बहुत सारी बातें समझता है कलुआ बड़ी ध्यान से उसकी बात सुनता है ======= पांचवा सीन=============== सेठ जी अपने कमरे में बैठकर इंतजार कर रहे हैं हल सिंह उर्फ़ सूखा और कलुआ सेठ जी के पास पहुंच जाते सेठ जी खुश हो जाते हैं दोनों को बैठने का इशारा करते हैं दोनों बैठ जाते हैं सेठ जी अपने अलमारी में से कुछ कागज निकलते हैं कलुआ और सूखा की तरह बढ़ा देते हैं सूखा कागज को हाथ में लेकर सेठ जी से कहता है " सेठ जी यदि मैं 10 % की ब्याज के हिसाब से 1 साल बाद तुम्हारा पूरा पैसा चुका दिया और आपने मेरे कागज नहीं दिए तो? " इस पर सेठ जी बड़े जोश में कहते हैं "कैसी बात करते हो जो मेरे उधर को चुका देता है उसका कागज उसे वापस कर देता हूं ईमानदारी का काम करता हूं कभी भी कोई बेमानी नहीं करता हूं " तभी दरवाजे की खटखटाना की आवाज आती है सेठ जी गेट को खोलते हैं सामने अजय खड़ा हुआ है वह अंदर कमरे में आ जाता है और सेठ जी के हाथ जोड़कर कहता है "सेठ जी यह लो आपकी रकम जो आपने मुझे उधर दी थी ब्याज समेत अब मेरे कागज मुझे वापस कर दो " सेठ जी बड़ी समस्या में पड़ जाते हैं कभी सूखा की शक्ल देखते हैं तो कभी कलुआ भी शक्ल देखते हैं कभी अजय की शक्ल देखते हैं फिर सेठ जी का मकान की तरफ ध्यान जाता है तुरंत सेठ जी मुस्कुरा कर कहते हैं "अरे अजय बेटा आ बैठो लाओ मेरी रकम ब्याज समेत और लो मैं तुम्हारा कागज वापस करता हूं " अजय सेठ जी को रकम दे देता है सेठ की अलमारी में से अजय के नाम का कागज निकलते हैं अजय के हाथ में दे देते हैं तभी अजय हाथ जोड़कर कहता है " सेठ जी आप बहुत ईमानदार हैं आपकी जय जयकार हो सच में आप बहुत महान है आप जैसा महान पड़ोसी सबको मिले सबकी मदद आप करते हैं" सेठ जी हाथ जोड़कर हंस के कहते हैं" बेटा हमेशा खुश रहो कभी मेरी मदद की जरूरत हो जरूर याद कर लेना" अजय कागज लेकर अपने घर चला जाता है अजय के जाते ही सेठ जी सूखा से कहते हैं "देखा मैं कितना ईमानदार हूं उसके कागज वापस कर दिए मैंने ऐसे ही यदि तुम चुका दोगे तुम्हारे भी कागज वापस कर दूंगा पर ब्याज 10 % ही लूंगा " सूखा हाथ जोड़कर कहता हैं "सेठ जी आपकी ईमानदारी आज हमें पता चल गई लाओ सेठ जी कौन से कागज पर साइन करने हैं मैं साइन करता हूं" सेठ जी कागज आगे बढ़ते हैं तभी सूखा का मोबाइल बजने लगता है इसका स्पीकर ऑन कर देता है फिर सूखा कान पर लगाता है उधर से एक औरत की आवाज आती है "सुनो जी कहां पर हो मेरे भैया ₹100000 की रकम की जुगाड़ करके लें आया हैं जल्दी से घर पर आ जाओ और कल बैंक वालों को देकर लोन की रकम चुकता कर दो " यह सुनकर कलुआ हंस कर कहता है "अरे सूखा भैया मजा आ गया इतना अच्छा आपका साला हैं आपका जो एक लाख का इंतजाम कर लाया अब ब्याज पर पर पैसे लेने की क्या जरूरत है क्यों सेठ जी को परेशान कर रहे हो" तुरंत सूखा खड़ा हो जाता है हाथ जोड़कर सेठ जी से कहता है "सेठ जी माफ करना मेरे साले जी ने पैसे का इंतजाम कर दिया है आप कभी जरूरत पड़ेगी जरूर लेने आऊंगा " यह कहकर सूखा और कलुआ सेठ जी के घर को छोड़कर बाहर आ जाते हैं सेठ जी सर पर हाथ रखकर पछताते हैं =================================== छंटवा सीन ===================================
अजय कागज लेकर अपने पिता के पास पहुंच जाता है और कागज अपने पिता को दे देता है पिता कागज को हाथ में लेकर फाड़ देते हैं तभी हल सिंह और कलुआ वहां पहुंच जाते हैं हल सिंह अपना मेकअप उतार देता है अजय और उसके पिताजी हाथ जोड़कर कहते हैं "आपका बहुत-बहुत धन्यवाद आपकी वजह से हमारा घर बच गया " इस बात पर हल सिंह हंसकर कहता है "पर सेठ जी का तो एक मकान हड़पने का सपना ही टूट गया" इस बात पर कलुआ कहता है "बहुत पछतायेगा उम्र भर बड़ा ईमानदार बना फिरता है" तभी हल सिंह कहता है "कलुआ भी उसे एक सबक और देना जरूरी है अजय की तरफ देखकर कहता है" कागज और पेन ला कर दो मुझे तो मैं कुछ लिखना चाहता हूं" अजय कागज ला कर देता हैं हल सिंह कागज पर कुछ लिखता है फिर चिट्ठी को कलुआ को देकर कहता है" चुपचाप ये चिट्ठी सेठ जी के आंगन में अभी फेंक आओ " कलुआ चिट्ठी को लेकर चुपचाप सेठ जी का आंगन में फेंक के वापस आ जाता है फिर हल सिंह अजय और उसके पिताजी से विदा लेते हैं अजय के पिता दोनों को आशीर्वाद देते हैं हल सिंह सिंह कलुआ दोनों अपने गांव की ओर लौट आते हैं =================================== सातवा सीन
=================================== सेठ जी कमरे में बैठे हैं तभी नौकर चिट्ठी लाकर देता है सेठ जी चिट्ठी को पढ़ते हैं उसमें लिखा है "आदरणीय सेठ जी मेरी तरफ से आपको नमस्कार मैं आपसे ₹100000 ब्याज पर तो नहीं ले पाया पर अजय के मकान पर आपकी नीयत में जो खोट आ गया था उसके मकान को जो आप हड़प्पना चाहते थे वो इच्छा मेरी चाल से आपकी पूरी नहीं हो पाई। मैं चाहता तो आपको पुलिस से भी पकड़वा सकता था बिना किसी लाइसेंस के लोगों को 10 परसेंट 20 परसेंट के ब्याज पर आप पैसे का लालच देकर उनके मकानों को हड़पने कोशिश करते हो उसे जुर्म में तुम्हें जेल भी जाना पड़ सकता था पर अजय के पिताजी ने कहा था की सेठ जी मेरे पड़ोसी है मैं नहीं चाहता पुलिस उनके दरवाजे पर आए चार लोग देखें मेरे पड़ोसी की बेइज्जती हो इसलिए ज्यादा बड़ा सबक नहीं दिया है आप सुधर जाओ वरना आगे जाकर बहुत पछतावा होगा इतनी अच्छी पड़ोसी बड़ी मुश्किल से मिलते हैं दौलत का क्या है आज है कल चली जाएगी पर आपके कर्म की चर्चा रह जाएगी और यदि गुस्सा आ रही होते गिलास पानी पी लेना और हाँ एक बात और जिस मकान में बैठकर आपने चाय पी थी वह मकान दरोगा जी का है दोबारा उसे मकान की तरफ मत देखना "छोटा सा सबक देने वाला हल सिंह" चिट्ठी को पढ़कर सेठ जी की आंखों में आंसू आ जाते हैं और घर से बाहर चलने लगते हैं तभी उनकी पत्नी आवाज देती हैं "कहां जा रहे हो" सेठ जी आंसू पोछ कर कहते हैं " मैं अजय के पिताजी के पास जा रहा हूं उनसे माफी मांगनी है मुझे" और सेठ जी घर से बाहर चले जाते हैं