किसी क्षण अवश्यही कुछ शून्य से निकलकर आया होगा.....
सोफी और डंकनशन स्कूल से अपने घर की ओर जा रही थी।
वापसी की शुरू वाले हिस्सेमें जोआना उनके साथ थी।
जो आना सोचती थी कि मनुष्य का मस्तिष्क एक उन्नत कंप्यूटर जैसा ही है, पर सोफी उसे पूरी तरह सहमत नहीं थी।
निश्चय ही एक व्यक्ति महज मशीन ही तो नहीं होता न!
सुपरमार्केट पहुंचने के बाद वे अपने अलग-अलग रास्तों पर चल पड़ी। सोफी एक पसर रहे उपनगर के बाहरी हिस्से में रहती थी,
और वहां से स्कूल की दूरी जोआना की तुलना में दुगनी थी।
उसके घर के आगे वाले बाग से परे कोई और मकान नहीं थे,
जिससे ऐसा लगता था कि उनका मकान दुनिया आखिरी छोर पर है, जहां से आगे वन शुरू थे।
नुक्कड़ से घूम कर वह क्लोवर क्लोज में आ गई। सड़क के आखिरी सिरे पर एक तीखा मोड था, जैसे कंबटेंस बैंड्स कहते थे। सप्ताहांत को छोड़कर लोग उसे तरफ नहीं जाते थे।
मैं की शुरुआती दिन थी कुछबागो में फलदर वृक्ष दफ्फोडिल्सक के घनी गुच्छे से गिरे हुए थे। बर्च के वृक्षों पर पहले से ही हल्के हरे पट्टे आने लगे थे। कितनी अद्भुत बात थी की कई वर्षों से इस समय न जाने कैसे हर चीज फुट निकलती थी। क्या बात थी कि क की आखिरी निसान गायब और मौसम हल्का गुनगुना पान आते ही। मरी हुई धरती से हरी वनस्पति काविशाल कलेवर उमड़ पड़ता था भारी मात्रा में बेकार की डाक होती और कुछ बड़े लिफाफे उसकी मां के नाम होते। एक ऐसा देर जैसे वह रसोई के मेज पर पटक देती और फिर ऊपर अपने कमरे में होमवर्क शुरू करने के लिए क्या पहुंचती। कभी-कभी उसके पिता के नाम बैंक से भी कुछ पात्र होते पर उसके पिता एक साधारण पिता नहीं थे। सूफी के पिता एक बड़े तेल वाहक जहाज के कप्तान थे और पर्स का अधिकतर समय बाहर यात्रा पर ही रहती थी जब कभी कुछ सप्ताह के लिए वह घर पर होते तो सोफी और उसकी मां के लिए घर की सुखद और आराम देह बनाने के लिए घर की चीजों को सजाते समेट रहते परंतु जब वह समुद्री अभियान पर होते तो कहीं बहुत दूर जा चुके प्रतीत होते थे।मैक्स बॉक्स में केवल एक ही पत्र था और वह था सूफी के नाम सफेद लिफाफे पर लिखा था सूफी एंड डांसिंग तीन ग्लोबल क्लोज बस इतना ही भजन भेजने वाले कौन हैं यह कहीं नहीं लिखा था इस पर कोई डाक टिकट भी नहीं थी सोफी गेट बंद करते ही लिफाफा खोल अंदर लिफाफे के साइज के बराबर कागज की एक सिल्क थी लिखा था तुम कौन हो? और कुछ नहीं केवल तीन शब्द हाथ से लिखते हुए और उनके बाद एक बड़ा प्रश्न चिन्ह है। उसने लिफाफे को दोबारा देख पत्र पत्र तो निश्चय ही उसी के लिए था आखिर मेल बॉक्स में इसे किसने डाला होगा सूफी जल्दी जल्दी लाल मकान में चली आई हमेशा की तरह आज भी उसकी बिल्ली शेरेकन फुर्ती से झाड़ियां से निकाल कर आगे बढ़ती पीढ़ी पर बूंदी और इससे पहले ही सूफी घर का दरवाजा बंद करती अंदर आ गई। जब सोफी की मां का मूड ठीक नहीं रहता तो वह घर के मैनेजर ही जंगली जानवरों का संग्रहालय कहती। निश्चय ही सोफी के पास यह संग्रह था और वह इससे काफी खुश थी इसकी शुरुआत हुई थी तीन सुनहरी मछलियों से गोल टॉप रेड राइडिंग हुड और ब्लैक जैक। उसके बाद वह तो ऑस्ट्रेलियाई बजरी घर मिट्ठू ले आई जिनके नाम सीमित और सेमली थे फिर गोविंद नामक कछुआ आया और अंत में मार्बल एलईडी जैसी बिल्ली शेर खान यह सब उसे इसलिए दिए गए थे क्योंकि उसकी मां कभी भी अपने काम से दोपहरी बिताने के भी काफी देर तक घर नहीं लौट पाती थी। और उसके पिता तो अधिकांश समय बाहर ही रहते थे सारी दुनिया में समुद्री यात्राएं करते हुए सोफी ने अपना स्कूल बैग फर्श पर एक कोने में लटका दिया और एक बड़े कटोरी में कैट फूड भरकर शेर खान के सामने रख दिया फिर वह रहस्यमय पत्र अपने हाथ में लिए हुए रसोई में स्टॉल पर बैठ गई तुम कौन हो? इस इसकी कोई समझ नहीं थी हां वह सूफी एंड डांसिंग अवश्य थी किंतु सच में वह थी कौन वास्तव में इसका सुराग नहीं लगा पाई थी अब तक अगर उसे कोई दूसरा नाम दे दिया गया होता तो क्या होता जैसे एनी न्यूट्रिशन तब क्या और हो जाती? तब अचानक उसे याद आया कि शुरू में उसके पिता चाहते थे कि उसे ले ले मोर के नाम से जाना जाय। सोपे ने कल्पना करने का प्रयास किया कि वह ले ले मोर एंबेसडर के रूप में अपना परिचय दे रही है और हाथ मिला रही है किंतु उसे यह सब गलत लगा वह तो कोई और थी जो सबको अपना परिचय दिए जा रहीथी।वह कूद कर बाथरूम में चली गई उसे विचित्र पत्र को अपने हाथ में लिए हुए दर्पण के सामने खड़ी रहकर अपनी आंखों की प्रतीक्षा या को एक तक देख रही थी मैं सोफी और एमडांसन हूं उसने कहा। दर्पण में मौजूद लड़की ने कोई प्रतिक्रिया नहीं की थोड़ा सा भी हिलती दुलती जो कुछ भी सोफी करती वह भी करती, वह भी हूं बहू वैसा ही करती सोफी दर्पण में अपनी प्रति छाया को चप्पल गति से हारने की चेष्टा की किंतु वह उतनी ही तेज निकली। तुम कौन हो सोफी ने पूछा सोफी का इसका कोई प्रति उत्तर नहीं मिला। हां उसे क्षणिक भ्रम तो जरूर हुआ कि यह प्रश्न उसने पूछा था या उसकी प्रतीक्षा या ने। सूफी ने अपनी वर्तनी शीशे में नाक पर लगे और कहा तुम मैं हो। जब उसे इसका भी कोई उत्तर नहीं मिला तो उसने बात को पलट कर कहा मैं तुम हूं।सोफी एमडांसन प्राय:अपनी स्कूल संकल्प सूरत से असंतुष्ट रहती थी उसे अक्सर बतलाया जाता कि उसकी आंखें सुंदर है बादाम के आकार सिंह किंतु लोक शायद सिर्फ ऐसा इसलिए कहते थे क्योंकि उसकी नाक कुछ ज्यादा ही छोटी थी। और मोहित ज्यादा बड़ा उसके कान भी आंखों के कुछ ज्यादा नजदीक थे सबसे खराब थी उसके सीधे लटकते बाल जिनके साथ कुछ भी करना संभव तक कभी-कभी उसके पिता उसके बालों को सहलाते उसे क्लाड डेब्यूसी की एक संगीत रचना की तर्ज परअसली जैसे बालों वाली कहते । पिताजी के लिए तो यह ठीक था क्योंकि उन्हें एक ऐसे सीधे सपाट के सॉन्ग के साथ कोई मजबूरी नहीं थी सोफी के बालों पर ना तो कोई खुशबूदार क्रीम और ना ही किसी स्टाइलिंग जेल का कोई प्रभाव पड़ता था। कभी कभी सोफी सोचती कि वह कितनी भक्ति है कहीं ऐसा तो नहीं कि वह जन्म से ही ऐसी पाठशाला हो उसकी मां सदैव उसे जन्म देती समय हुई अपनी परसों पीड़ा का जिक्र करती रहती थी। किंतु क्या उसकी बदसूरती इसी का कारण थी? कितना अजीब था कि उसे यह भी नहीं मालूम कि वह असल में कौन थी और क्या यह अनुच्छेद था कि उसे इस बारे में कभी नहीं पूछा गया कि वह कैसी दिखाना चाहती है उसकी छवि तो बस उसे पर मार दी गई थी वह अपने मित्रों को तो सुन सकती थी किंतु यह निश्चित था कि उसने स्वयं खुद नहीं चुना था उसने तो यह भी नहीं चुना था कि वह एक मानुषी बनेगी। मनुष्य होना क्याहै? सोपे ने एक बार फिर से शीशे में खड़ी लड़की पर निगाह डाली मैं सोचती हूं कि अब ऊपर जाकर जीव विज्ञान का होमवर्क करूंगी उसने लगभग क्षमा याचना के भाव से कहां पर बाहर हाल में आई तो फिर सोचने लगी नहीं इससे तो बेहतर होगा कि मैं बाग में जाऊं।