इर्ष्या और लालचइर्ष्या की अग्नि जलाए मन,सुख को चुराए पल-पल क्षण।दूसरों की तरक्की देख,अपना चैन न सह पाए तन।लालच की सीमा ना कोई हो,हर कदम पर मन बहके।धन-दौलत के पीछे भागे,संतोष का दीप बुझा दे।इर्ष्या से
ईर्ष्या की ज्वाला में जले कई दिल,लालची छांव सपनों में झिलमिल।दूसरों की ख़ुशियों से आंखें चुराएं,ख़्वाहिशों में सब कुछ खुद गवाएं।पैसों की दौड़ में रिश्ते हैं बिखरते,प्यार की राहें अब धुंध में सिहरते।हर
तुम इस ईर्ष्या लालच को पहचानते हैं,फिर क्यों तुम इस लालच को अपनाते हैं।लालच देकर झूठी फ़ाईलो में छिपा कर, गरीबों की जिन्दगी बहुत महंगी तोलते हैं।चुनाव करीब आते तब याद इनको आती,हमें लालच देकर नये