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बसन्त पंचमी

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ईर्ष्या की ज्वाला में जले कई दिल,लालची छांव सपनों में झिलमिल।दूसरों की ख़ुशियों से आंखें चुराएं,ख़्वाहिशों में सब कुछ खुद गवाएं।पैसों की दौड़ में रिश्ते हैं बिखरते,प्यार की राहें अब धुंध में सिहरते।हर

परवाह न कर, तमाशे तों होते ही रहेंगे ताउम्रतू बस यें ख्याल रख, कि किरदार बेदाग रहें

सबके मन को मोहित करती , सब का मन गदगद करती । बासंती पवने चले शनै-शनैहरियाली का रंग भरती ।। फूलों की ख़ुशबू हर तरफ छाई,सरसों की पीली रंगत छाई ‌। कोहरा से मुक्ति हुई ठंड कम,पतझड़ मौस

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हे अग्नि देव तुम्हें नमन हो हो यज्ञ के पुरोहित तुम हो हवि साधन दान के धन हो देवों के आवाहन तुम हो यज्ञ फल रत्न धारक भी हो हे अग्नि देव तुम्हें नमन हो ज्ञानार्जन करते वो ऋषि हैं ज्ञान दान

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