इलाहाबाद
अपना घर, गाँव,और शहर
या यूँ कहिये
अपनी छोटी सी इक दुनिया।
इसके बारे में कुछ कहना-लिखना,
जैसे आसमान में तारे गिनना
या जलते हुए तवे पर
उंगलियों से अपनी ही कहानी लिखना है।
सैकड़ों ख्वाब, हज़ारों किताब और
अनगिनत रिश्तों में बीतती जिंदगी का नाम है इलाहाबाद।
एक ऐसी जगह
जहाँ हर पल, हर लम्हा
बनती-बिगड़ती हैं जिंदगानियाँ।
फिर भी
हजारों बर्बाद ख्वाहिशों, असफलताओं में
बची हुई उम्मीद है इलाहाबाद।
यहाँ बनते हैं कई ख़ूबसूरत रिश्तें
जो ताउम्र चलते हैं।
टूटते-जुड़ते दिलों का अपना संगम,
जहाँ हर कोई सोचता हुआ सोता है,
और गुनगुनातें हुए उठता है।
यहाँ जवानी
आटे और तेल की तरह खत्म होती है।
और हर बूढा-युवा,
नई भर्ती आने पर
फिर से हो जाता है गबरू जवान।
यहाँ चंद सालों में
जिये जाते हैं कई सारी जिन्दगानियाँ।
इसीलिए
यूपीपीएससी, एसएससी की जान बना है ये इलाहाबाद।
चाय, सब्जी और किताब की दुकान पर
यूनिवर्सिटी और कोचिंग वाला दोस्त
मिल जाता है अक्सर।
और महज कुछ मुलाकातों में
जान लेता है एक-दूसरे का घर बार।
सिर्फ कहने को यहाँ लगता है मेला
बस एक महीना,
सच पूछिए तो हर क्षेत्र, बोली, भाषा के लोग
अपनी मौजूदगी पेश करते रहतें हैं पूरे साल।
आजमगढ़, बलिया, अम्बेडकर नगर,
और पूर्वांचल के तमाम शहरों से आये हुए जिन्न,
अल्लापुर, सलोरी, कटरा, बघाडा,
आदि के चिरागों में
बंद रहतें हैं घिसने से पहले।
इलाहाबाद दिलों में बसता है,
अपनी बोली, भाषा, संस्कृति
बकैती, गाली, और भौकाल के से।
जनाब इलाहाबाद का मैटर तो है बहुत बड़ा!
नही खत्म होगा यह
तमाम शोधों के बाद भी!
पर सच कहूँ तो मैं 'थक गया हूँ लिखते हुए'
लेकिन सोच रहा हूँ अब भी..!!
:- सुधीर द्रन्च