🌷🌷🌷🌷जय श्री राम🌷🌷🌷🌷
पंक न रेनु सोह असि धरनी ।
नीति निपुन नृप कै जसि करनी ।।
जल संकोच बिकल भइं मीना ।
अबुध कुटुंबी जिमि धनहीना ।।
बिनु घन निर्मल सोह अकासा ।
हरिजन इव परिहरि सब आसा ।।
कहुँ कहुँ बृष्टि सारदी थोरी ।
कोउ एक पाव भगति जिमि मोरी ।।
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अर्थात :- न कीचड़ है न धूल ; इससे धरती ( निर्मल होकर ) ऐसी शोभा दे रही है जैसे नीतिनिपुण राजा की करनी ! जल के कम हो जाने से मछलियाँ व्याकुल हो रही हैं , जैसे मूर्ख ( विवेकशून्य ) कुटुम्बी ( गृहस्थ ) धन के बिना व्याकुल होता है ।।
बिना बादलों का निर्मल आकाश ऐसा शोभित हो रहा है जैसे भगवद्भक्त सब आशाओं को छोड़कर सुशोभित होते हैं । कहीं - कहीं ( विरले ही स्थानों में ) शरद-ऋतुकी थोड़ी-थोड़ी वर्षा हो रही है । जैसे कोई विरले ही मेरी ( श्री रामजी की ) भक्ति पाते हैं ।।
राम से बड़ा राम का नाम ।
बनाते हैं हर बिगड़े काम ।।
🌷🌷🌷 जय श्री राम 🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷