🌹🌹🌹 जय श्री राम🌹🌹🌹
तजि माया सेइअ परलोका ।
मिटहिं सकल भवसंभव सोका ।।
देह धरे कर यह फलु भाई ।
भजिअ राम सब काम बिहाई ।।
सोइ गुनग्य सोई बड़भागी ।
जो रघुबीर चरन अनुरागी ।।
आयसु मागि चरन सिरु नाई ।
चले हरषि सुमिरत रघुराई ।।
पाछें पवन तनय सिरु नावा ।
जानि काज प्रभु निकट बोलावा ।।
परसा सीस सरोरुह पानी ।
करमुद्रिका दीन्हि जन जानी ।।
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अर्थात :-- माया ( विषयोंकी ममता-आसक्ति ) को छोड़कर परलोक का सेवन ( भगवान् के दिव्य धामकी प्राप्ति के लिये भगवत्सेवारूप साधन ) करना चाहिये , जिससे भव ( जन्म-मरण ) से उत्पन्न सारे शोक मिट जायँ । हे भाई ! देह धारण करने का यही फल है कि सब कामों ( कामनाओं ) को छोड़कर श्रीरामजी का भजन ही किया जाय ।।
सद्गुणों को पहचानने वाला ( गुणवान् ) तथा बड़भागी वही है जो श्रीरघुनाथजी के चरणों का प्रेमी है । आज्ञा माँगकर और चरणों में फिर सिर नवाकर श्रीरघुनाथजी का स्मरण करते हुए सब हर्षित होकर चले ।।
सबके पीछे पवनसुत श्रीहनुमानजी ने सिर नवाया । कार्य का विचार करके प्रभु श्रीरामचन्द्रजी ने उन्हें अपने पास बुलाया । उन्होंने अपने कर-कमल से उनके सिर का स्पर्श किया तथा अपना सेवक जानकर उन्हें अपने हाथ की अँगूठी उतार कर दी ।।
राम से बड़ा राम का नाम ।
बनाते हैं हर बिगड़े काम ।।
🌹🌹🌹 जय श्री राम 🌹🌹