🌷🌷🌷 जय श्री राम 🌷🌷🌷
इहाँ पवनसुत हृदयँ बिचारा ।
राम काजु सुग्रीवँ बिसारा ।।
निकट जाइ चरनन्हि सिरु नावा ।
चारिहु बिधि तेहि कहि समुझावा ।।
सुनि सुग्रीवँ परम भय माना ।
बिषयँ मोर हरि लीन्हेउ ग्याना ।।
अब मारुतसुत दूत समूहा ।
पठवहु जहँ तहँ बानर जूहा ।।
कहहु पाख महुँ आव न जोई ।
मोरें कर ता कर बध होई ।।
तब हनुमंत बोलाए दूता ।
सब कर करि सनमान बहूता ।।
भय अरु प्रीति नीति देखराई ।
चले सकल चरनन्हि सिर नाई ।। 🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷
अर्थात :-- यहाँ ( किष्किन्धानगरीमें ) पवनकुमार श्रीहनुमानजी ने विचार किया कि सुग्रीव ने श्रीरामजी के कार्य को भुला दिया । उन्होंने सुग्रीव के पास जाकर चरणों में सिर नवाया । ( साम , दाम , दण्ड , भेद ) चारों प्रकार की नीति कहकर उन्हें समझाया ।।
हनुमानजी के वचन सुनकर सुग्रीव ने बहुत ही भय माना । भ्रामक विषयों ने मेरे ज्ञान को हर लिया । अब हे पवन सुत ! जहाँ-तहाँ वानरों के झुंड रहते हैं ; वहाँ दूतों के समूहों को भेजो ।।
और कहला दो कि एक पखवाड़े में जो न आ जायगा , उसका मेरे हाथों वध होगा । तब हनुमानजी ने दूतों को बुलाया और सबका बहुत सम्मान करके- ।।
सबको भय , प्रीति और नीति दिखलायी । सब बंदर चरणों में सिर नवाकर चले ।।
राम से बड़ा राम का नाम ।
सुधारे हैं हर बिगड़े काम ।।
🌹🌹🌹 जय श्री राम 🌹🌹🌹