अब महानायक यहां, जहर बेचते बाजार में।
कुछ कलम चारण बनी, मतलबी दरबार में।
आईना भी शरमा गया, बेशर्म चेहरे देखकर,
जो खबर जैसी बिकी, वैसी छपी अखबार में।
30 अक्टूबर 2021
अब महानायक यहां, जहर बेचते बाजार में।
कुछ कलम चारण बनी, मतलबी दरबार में।
आईना भी शरमा गया, बेशर्म चेहरे देखकर,
जो खबर जैसी बिकी, वैसी छपी अखबार में।