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आ जाओ एक बार प्रिए!

4 मार्च 2022

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शर्म, लिहाज की स्वर्ण मेखला

से आ जाओ इस पार प्रिए,

तन मन तुम बिन व्याकुल मेरा,

आ जाओ एक बार प्रिए,

क्या याद नहीं, उस पथ की,

जिस पर,करती थी इंतजार मेरा,

तुम कलियों सी खिल उठती,

और भवरे सा गुंजार मेरााा।

याद उसी पल का कर के जानू,

आ जाओ एक बार प्रिए।

प्रफुल्लित होते थे परस्पर,

जैसे जीवन संचार नया।

याद बहुत ही आती हो तुम,

बस तन में मन में तुम छाई,

जैसे मिलने को थी आतुर

फिर आओ एक बार प्रिए

शर्म, लिहाज की लक्ष्मण रेखा

तुम फिर तोड़ो एक बार प्रिए,

शर्तों और वादों की लाइन,

फिर बोलो एक बार प्रिए,

शर्म की लाली गालों पर,

उलझी जुल्फो की सुलझन

फिर देखूं एक बार प्रिए।

क्या याद नहीं है वो पल,

जब तुम कली,और मै भंवरा,

याद उसी पल को करके,

 आ जाओ एक बार प्रि्ए

शर्म लिहाज की स्वर्ण मेखला,

से आ जाओ इस पार प्रिए

तन ,मन तुम बिन व्याकुल मेरा,

आ जाओ एक बार प्रिए।।

शर्म लिहाज की स्वर्ण मेखला,

से आओ इस पार प्रिए

आ जाओ एक बार प्रिए

     कवि - दिनेश त्रिपाठी

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