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शर्म, लिहाज की स्वर्ण मेखलासे आ जाओ इस पार प्रिए,तन मन तुम बिन व्याकुल मेरा,आ जाओ एक बार प्रिए,क्या याद नहीं, उस पथ की,जिस पर,करती थी इंतजार मेरा,तुम कलियों सी खिल उठती,और भवरे सा गुंजार मेरााा।य