झगड़ा और दुश्मनी
यदि आपस में कुछ या गंभीर;
मनमुटाव, गलतफहमी, तकलीफ, घाटा आदि हो जाये;
और बहुत गुस्सा आ जाये;
तो भले ही छोटा झगड़ा कर लेना;
पर दुश्मनी करना नहीं।।
दुश्मनी कर लेने के बाद, पछताना ही शेष रहता है;
फिर रिश्ता बचता ही नहीं;
फिर से एक हो जाने का रास्ता खुला रहता नहीं।
व्यथित न हो जायें, फिर से एक होने की संभावना शेष रहती है,
फिर से एक होना कठिन हो जाता है;
पर असंभव रहता नहीं।।
आपस में फिर से एक हो जाना चाहिए;
यदि दुश्मनी का कारण शेष रहता नहीं।।
आपस के प्यार का, साथ बीते अच्छे समय का, सम्मान करना;
और लम्बा झगड़ा, गंभीर झगड़ा जल्दी में शुरू करना नहीं।
यदि करना भी पड़े तो;
फिर से एक हो जाने का रास्ता खुला रखना;
सबंध की मर्यादा के बहार जाना नहीं।।
आपस की दुश्मनी में भी मर्यादा पालन करना;
और परिवार, समाज, देश, मानवता, प्रकृति के विरुद्ध जाना नहीं।।
आपस में फिर से एक हो जाना चाहिए;
यदि दुश्मनी का कारण शेष रहता नहीं।।
उदय पूना
विशेष :
मैं यहां झगड़े और दुश्मनी के शब्दों में स्पष्ट अंतर लेकर चला हूं;
मैं इसको बतला देता हूं;
आपस में झगड़ा हो जाना बड़ी बात नही;
पर दुश्मनी करना साधारण बात नहीं।
प्यार और साथ साथ रहते हुए;
झगड़ा हो सकता है;
पर दुश्मनी और प्यार एक साथ होते नहीं।
झगड़ा हुआ करता है;
आहत होने की अभिव्यक्ति, गुस्सा करना;
कुछ कठोरता से शिकायत करना;
स्वयं के साथ जो बुरा हुआ वो बतलाना;
यह सिर्फ बातों तक ही सीमित रहता है;
इसमें सामनेवाले का नुकसान करना समलित नहीं।
दुश्मनी में एक दूसरे के विरोध में उतर आते हैं, विरोधी बन जाते हैं;
झगड़े में एक दूसरे के विरोधी बनते नहीं।
दुश्मनी में समलित है;
विधिवत, योजना बध्द तरीके से, पीछे से;
षडयंत रच छति पहुंचाना;
केवल शिकायत करने तक, शब्दों तक, यह सीमित रहता नहीं।
उदय पूना