सम्बन्ध
सम्बन्ध, यानि बराबरी का बंधन, मन से स्वीकार किया जाता है;
सम्बन्ध, किसी प्रकार की कोई मजबूरी नहीं।
सम्बन्ध, आपसी प्यार, समझ, साझा उद्देश्य से आगे बढ़ता है;
सामान्यता सम्बन्ध में कुछ भी थोपना नहीं।
कोई विशेष स्थिति में थोपने की आवश्यकता पड़ भी सकती है;
पर दादागिरी से सम्बन्ध चलता ही नहीं।
सम्बन्ध मन से होता है, सम्बन्ध में समझना,सहना होता रहता है;
पर किसी भी प्रकार का दबना, दबाना नहीं।
यहां तो दोनों तरफ से बराबर बंधन है, इसलिए सम्बन्ध है;
जो एक तरफा हो उसे सम्बन्ध कहते ही नहीं।
जो व्यक्ति स्वयं से ही खुश न हो;
वो किसी के साथ खुश कैसे होगा ?
उसे खुश करने का उपाय होता ही नहीं।
उदय पूना
9284737432