।। दूसरा तो दूसरा ही होता है।।
संबंध तो वही है;
जिसमें तोड़ने का विकल्प होता ही नहीं।
रिश्ता तो वही है;
जिसमें छोड़ने का विकल्प होता ही नहीं।।
चलो बात करें, चलो कुछ बात करें;
एकदम ही निजी रिश्ते की;
एकदम ही अंतरंग रिश्ते की;
एकदम ही पूरे पूरे व्यक्तिगत संबंध की
चलो बात करें, चलो कुछ बात करें।।
( दूसरा से यहां मतलब है दूसरा व्यक्ति, कोई भी अन्य व्यक्ति,)
दूसरा तो दूसरा ही होता है;
दूसरा कभी भी पहला हो ही नहीं सकता।
फिर क्या अंतर पड़ता है;
चाहे मां दूसरी हो, चाहे पत्नी दूसरी हो;
क्या अंतर पड़ता है;
दूसरा कभी भी पहले का स्थान ले ही नहीं सकता।
यह संभव होता ही नहीं;
ऐसा होना संभव होता ही नहीं।
वही जोड़ बनता ही नहीं;
वैसा ही जोड़ फिर बनता ही नहीं;
वैसा ही जोड़ मिलता ही नहीं;
वैसा ही जोड़ फिर होता ही नहीं।
संबंध तो वही है जिसमें तोड़ने का विकल्प होता ही नहीं;
रिश्ता तो वही है जिसमें छोड़ने का विकल्प होता ही नहीं।।
उदाहरण ले लें मां और बेटे का, बेटे के लिए मां ही मां होती है;
कोई भी अन्य औरत उसके पिता से शादी कर क्या उसकी मां का स्थान ले सकती है ?
एक और उदाहरण ले लें पति और पत्नी का;
तो पति के लिए वही-पत्नी ही वही-पत्नी है;
कोई भी अन्य औरत पति से शादी रचा कर इस पत्नी का स्थान कैसे ले सकती है ??
दूसरी-पत्नी तो दूसरी-पत्नी ही होगी;
दूसरी-मां तो दूसरी-मां ही होगी।।
दूसरी-पत्नी कैसे पहली-पत्नी हो सकती ?
दूसरी-मां कैसे पहली-मां हो सकती ??
मैं हाथ जोड़ निवेदन करता हूं, जो मैं कहना चाहता हूं, वही संदेशा समझें;
यहां पर मैं मां और पत्नी को एक नहीं समझ रहा हूं;
यहां मां और पत्नी केलिए एक द्रष्टि नहीं ले रहा हूँ;
मां और पत्नी की तुलना हो ही नहीं सकती ।।
चलो बात करें, चलो कुछ बात करें;
एकदम ही निजी रिश्ते की;
एकदम ही अंतरंग रिश्ते की;
एकदम ही पूरे पूरे व्यक्तिगत संबंध की;
चलो बात करें, चलो कुछ बात करें।।
चलो कुछ बात करें उस रिश्ते की; जिसमें व्यक्ति अपना सब कुछ अपने जोड़ीदार को दे देता है; जो उस रिश्ते हेतु उस व्यक्ति के लिए देना संभव हो सकता है। जो संभव हो सकता है वह दे देता है। फिर स्थिति ऐसी हो जाती है कि वह व्यक्ति उसी रिश्ते हेतु किसी अन्य को कुछ भी नहीं दे सकता है; इस हेतु उसके पास कुछ शेष रहता ही नहीं है।। किसी व्यक्ति से मेरे संबंध हैं; बड़े ही व्यक्तिगत संबंध हैं; बहुत ही अंतरंग संबंध हैं; तो क्या कोई अन्य व्यक्ति उसका, मतलब मेरे जोड़ीदार का स्थान ले सकता है ? क्या यह होना संभव है ??
मैं जिस व्यक्ति को जिस रिश्ते में अपना सब कुछ दे चुका हूं;
तो क्या मेरे लिए यह संभव है कि उसी रिश्ते के नाम पर किसी अन्य व्यक्ति को मैं फिर से अपना सब कुछ दे सकता हूं ?
उसी तरह का जोड़ बना सकता हूं ?
क्या यह संभव है ??
जिस व्यक्ति से जिस रिश्ते को लेकर मेरा जो समय निकला है;
जो जीवन निकला है;
जो जोड़ बना है;
क्या कोई और व्यक्ति उसका स्थान ले सकता है, उसके साथ भी वही जोड़ हो सकता है ?
क्या यह संभव है ??
जिस औरत को मां के रूप में पाया और मां को जो देना चाहिए वह सब कुछ दे दिया;
उसी प्रकार जिस औरत को पत्नी के रूप में पाया और पत्नी को जो देना चाहिए वह सब कुछ दे दिया;
अब क्या फिर से इसी तरह का जोड़ किसी अन्य औरत से संभव है ??
दूसरा तो दूसरा ही होता है;
दूसरा कभी भी पहला हो ही नहीं सकता।।
एक बात बड़ी प्रचलित है;
मां को किसी भी कारणवश मत त्यागो क्योंकि दूसरी मां नहीं मिल सकती;
यहां मैं कहता हूं, सभी कहते हैं कि मां तो मां है दूसरी मां कैसे मिल सकती ??
यह बात हम सब को बड़ी ही स्पष्टता से मालूम है;
और प्रचलित भी है।।
हम सोचते हैं;
पत्नी, पत्नी में ऐसी क्या बड़ी बात है;
पत्नी में ऐसी क्या विशेष बात है;
पत्नी तो दूसरी भी मिल सकती है।।
दूसरी पत्नी मिल जाएगी;
मतलब पत्नी को त्याग दिया जाए तो दूसरी पत्नी मिल जाएगी।।
मेरा निवेदन है कि यहां हम ध्यान दें कि;
वही पत्नी नहीं मिल सकती।।
मैं एक अन्य औरत से शादी कर सकता हूं;
और फिर मैं भी, और दूसरे भी समझने लगेंगे कि मुझे पत्नी मिल गई।
पर वही पत्नी नहीं मिल सकती;
पर वही पत्नी नहीं मिल सकती।।
हर व्यक्ति का अपना महत्व हम देखना चाहे तो यह दिख सकता;
कोई भी किसी व्यक्ति के महत्व की तुलना नहीं कर सकता;
यदि किसी भी व्यक्ति को त्याग दिया, छोड़ दिया तो वह पुनः नहीं मिल सकता।।
हमें जिस को महत्व देना है;
पूरे जीवन पर्यंत जिस व्यक्ति को महत्व देना है;
तो फिर उसे त्यागने का, छोड़ने का, विचार भी छोड़ देना है।।
जो हम चाहे किसी व्यक्ति को महत्व देना;
पूरे जीवन पर्यंत किसी व्यक्ति को महत्व देना;
तो फिर हमें उस व्यक्ति को छोड़ने का, त्याग ने का विकल्प होगा तज देना।।
उदय पूना,
9284 7374 32,