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झोपड़ी

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घर हैं, तेरा भी कही?उठते सागर की लहरों में, दिखती दिखती रही वह|बहते पसीने की बूंदों में, लिपटकर सूख जाती हैंवह|खाए हमने बहुत उसके झोंके,पेट को भूखा रखती वह| यहसबसे कहता रहा, इस जहाँ में भूखो मरता रहा| अपनी जान समझ, जीने के लिए उसके साए में रहा|करती वह भी गुमान कभी, रुक कर किसी डाल में|इस जमी में नाम

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