सुनो ज़रा !
जैसे बारिश की बूँदें ढूंढें पता,
गरम तपते मैदानों का.
जैसे माँ के आने का देता था बता,
सुन शोर पायल की आवाज़ों का.
वैसे ही गर महसूस कर सको मुझे आज,
बग़ल की खाली जगह पर,
हर हसने वाली वजह पर,
बिन बात हुई किसी जिरह पर.
कह दो न,
जैसे,
तुम ‘झूठमूठ’ का कहते थे,
और हम ‘सचमुच’ का मान लेते थे.
जैसे,
तुम कह देते थे कि “हम आयेंगे,
बता देना जब खाली हो”,
लो हम कहे देते हैं आ जाओ,
ग़र भूले न हो पता,
घर तो खाली ही है मेरा,
कुछ लोग दिखेंगे अलबत्ता!
-- Abhaya Mishra
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