अरे माँ, मॉम, मम्मी या अम्मा,
कितने भी ‘मास्टर शेफ’ कि डिश खा लूँ,
पर तेरी सूखी रोटी आज भी शहद लगती है,
कितने भी फेमस ‘हबीब’ से मसाज करा लूँ,
तेरे हाथ से की मालिश से ही,
मुझे आज भी बेस्ट आँख लगती है!
कितने भी बड़े ‘रामदेव’ का योगा कर लूँ,
तेरे आँचल के तले ही गहरी शांति मिलती है.
क्यूंकि,
तू मेरे पेट का साइज़ नहीं,
आज भी उसकी भूख देखती है.
तू मेरे गंजे सर पे,
आज भी कहीं से तो बाल ढूँढ़ लेती है.
तेरी ये 'जान' ९ महीने पेट में,
और फिर पूरी ज़िन्दगी तेरे दिमाग में करवट लेती है.
क्यूंकि,
कभी भी क़र्ज़ अदा कर पाने की तो छोडो,
बस ये एहसास करा दूँ कि,
तुझे हर दिन याद करता हूँ,
और याद करने को,
किसी Mother’s day की बाँट नहीं जोहता हूँ.
बस, मेरा कुछ फ़र्ज़ ज़रूर अदा हो जायेगा.
इसलिए,
तेरा 'सिर्फ एक' दिन नहीं हो सकता,
और तुझे 'एक दिन' में समेंट लूँ ऐसा हो नहीं सकता!