जिंदगी भी कितनी अजीब है ना, कभी रुलाती है कभी हँसाती है। अपने ही अंदाज में अपने रंग बिखेरती है..कहते है कि जिंदगी गुलाब की पंखुड़ियों जैसे कोमल है पर सब ये भी जानते है कि काँटे भी है उस गुलाब के साथ। बस हम उन्हें चाहते नहीं है, कोई भी क्यूँ चाहें काँटे को???
सभी को बस वो गुलाब नजर आता है पर वो काँटे नहीं जिसके इर्द-गिर्द वो पनपता है खिलता है। उसका संघर्ष कोई देखना ही नहीं चाहता, न ही उसके मजबूत साथी को, जो नुकीला है पर जिंदगी को रंगीला करने में इसका भी हाथ है। अब सोचो जरा, " अगर हमें आसानी से सब मिल जाता तो क्या हम उसका आदर करते???? " ......
चलो मान लो करते तो भी उसकी कीमत जल्द भूल जाते...क्यूँ की जिंदगी का उसूल समझलो इसे, अगर कोई भी चीज़ बिना संघर्ष के, बिना मेहनत से मिले तो हम उसकी कदर जल्दी भूल जाते है और वही अगर मेहनत के पसीने से,समय के संघर्ष को लाँघकर मिले तो उसका मूल्य दुगुना हो जाता है।
क्यूंकि हमे मूल्य उसी का याद रहता है जब हम उसे पाने के लिए जी जान लगाकर, रात दिन एक कर के... प्रतिदिन उसे पाने की चाहत को ललकार कर, उस चाहत को दिल में ले कर आगे बढ़े तो उसे जीतने या पाने की खुशी अलग ही होती हैं।
और हमेश याद रखना प्यार की सीढ़ी भी कांटों से तेह होकर ही जिंदगी बनाती हैं।