कुछ भी बहुत ज्यादा,
हानिकारक बन जाता है,
आश्चर्य की बात है, कि,
दयालुता भी हानिकारक हो सकती हैं,
वो कहते है ना...
"भलाई का ज़माना ही नहीं रहा हैं " ,
ये एक ही तो स्वभाव था,
जो हर एक को लुभाता था,
छोटा हो या बड़ा,
अंधे, बहरे और गूंगे तक को भी चपेट में ले लिया था,
कभी सोचा भी नहीं की इस में भी खामियां होगी,
कभी-कभी नेकी उल्टी पड़ जाती हैं,
क्योंकि कुछ को लगता है हम अपना मतलब निकाल रहे हैं,
और तो और हम आशा कर बैठते हैं कि,
बदले में वो भी हमारा अच्छा ही सोचेगा या करेगा,
ऐसी सोच का पनपना ही हानिकारक हो गया है,
दया भावना अच्छी है, पर खुद को भूल जाना भी सही नहीं,
क्यूंकि हमेशा अच्छाई, अच्छी नहीं होती,
बड़ी महंगी पढ़ जाती है,
दुनिया मतलबी बन जाती हैं, क्योंकि....
लोगों को आजकल हर जगह फायदा चाहिए,
व्यापार हो या दयालुता,
लाभ उठाना और नीचा दिखाना बड़ा ट्रेंडी हो गया है,
बेचारे जानवर भी समझते हैं इस भाव को,
पता नहीं हम इंसान क्यूँ नहीं समझ पा रहे हैं ;
कितनी अजीब हो गयी है दुनिया,
जिसे हम नेकी समझ रहे थे,
वो आज मिलावट बन गयी हैं,
किसी की बुरी सोच में,
किसी की बुरी हरकतों से,
ऐसा क्या बदल गया है कि,
किसी की प्रशंसा तो छोड़ हो,
नेकी की अहमियत बरकरार रखना ही भूल गये हैं,
बस मिलावट कर रहें हैं ,
कुछ भी खरा नहीं छोड़ा,
एक नेकी थी,
जो इंसानियत को जिंदा और शुद्ध रखी हुई थी,
आज हमारी सोच ने, हरकतों ने,
नेकी में भी खामियां ला दी ।।