"पीहू ब्रेकफास्ट पूरा खतम कर के जाना बच्चा।"
डाइनिंग टेबल पर बैठा एक करीब तीस साल का बलिष्ठ और करीब छः फुट लंबा युवक उसके ठीक सामने स्कूल यूनिफॉर्म में बैठी एक तेरह वर्षीय बच्ची से कह रहा था। उसके गौरवर्ण मुख पर एक गुलाबी सी आभा इस तरह छाई हुई थी जैसे किसी ने मक्खन में सिंदूर मिला दिया हो। घुंघराले हल्के भूरे बाल अच्छी तरह व्यवस्थित करने के बाद भी उसके ललाट पर बिखरकर उसके व्यक्तित्व को कुछ अधिक ही निखार रहे थे।
"बस पापा अब और नहीं। अब भूख नहीं है।", उसने किसी किताब में नज़रे गड़ाए हुए ही ज़वाब दिया।
वह बच्ची, पीहू, उस शख़्स के बिल्कुल विपरीत, सांवला रंग, भूरे रंग की बादामी आंखें और अपेक्षाकृत काले, सीधे बालों में बिल्कुल साधारण सी जान पड़ती थी।
"पीहू!...बच्चा ब्रेकफास्ट ठीक से नहीं करोगे तो फिर पढ़ाई में कैसे मन लगेगा? और ये क्या नया शौक पाल लिया है तुमने आजकल? बेटा, ये पढ़ाई करने का टाइम है, पढ़ाई पर ध्यान दो। ये वक्त फिर लौटकर नहीं आएगा। नॉवेल पढ़ने के लिए तो बहुत वक्त मिलेगा बाद में।"
"बस पापा ये आखिरी है। इसके बाद और कोई नॉवेल नहीं पढूंगी। पूरा ध्यान पढ़ाई पर ही लगाऊंगी प्रॉमिस। पापा बहुत इंटरेस्टिंग नॉवेल है ये। आपको तो पता है ना मुझे मर्डर मिस्ट्री पढ़ने में कितना मज़ा आता है। कातिल के कत्ल करने का तरीका बिल्कुल ही अलग है इसमें।"
तभी फ़ोन की रिंगटोन ने उस शख़्स का ध्यान अपनी तरफ खींचा।
"हां, अभिमन्यु बोलो।"
"......क्या?"
"......अच्छा ठीक है, तुम टीम के साथ फ़ौरन वहां पहुँचो। मैं भी डायरेक्ट वहीं आता हूं।"
उसने कॉल डिस्कनेक्ट किया और तेज़ कदमों से दरवाज़े की तरफ बढ़ा।
"पापा मुझे स्कूल कौन ड्रॉप करेगा?"
"बेटा, तुम ड्राइवर अंकल के साथ चले जाना। मुझे जरा जल्दी है।" उसने मुड़कर ज़वाब दिया और फर्राटे से निकल गया।
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(डी एस पी अर्जुन रावत सिविल इंजीनियर मिस्टर करन शर्मा के बंगले पर पहुंचता है। वहां इंस्पेक्टर अभिमन्यु, सब इंस्पेक्टर शिवानी, कांस्टेबल बलबीर यादव और ड्राइवर सोनू पहले से ही मौजूद होते हैं।)
"यह कैसे हुआ? तुम कौन हो? तुम्हारा मृतक से क्या रिश्ता है?" अर्जुन रावत ने लाश के पास अपने नाक और मुंह को रुमाल से भींचकर खड़े उस दुबले-पतले शख्श से पूछा।
"जी...जी साहब, मैं खाना बनाता हूं यहां। फ़ोन मैंने ही किया था। कल रात साहब को आने में जरा देर हो गई थी। उन्होंने खाना भी बाहर ही खा लिया था। वो मेमसाहब और रोहित बाबा बैंगलोर गए हुए हैं, तो साहब अक्सर खाना बाहर ही खाकर आते हैं।
साहब के आने के बाद मैं सो गया था। आज सुबह जब साहब को चाय देने उनके कमरे में आया तो....तो....पता नहीं साहब... ये...ये सब कैसे हो गया!?" उसने रोते, घबराते हुए सारी कहानी कह सुनाई।
"अच्छा, क्या नाम है तुम्हारा?"
"जी...जी राजू।"
"कौन-कौन रहता है यहां?"
"जी..मैं, साहब, मेमसाहब, रोहित बाबा और रत्ना।"
"ये रत्ना कौन है?"
"साहब मेरी जोरू है। मैं खाना बना लेता हूं और वह बर्तन, झाड़ू-पोछा सब कर देती है।"
"तो अभी रत्ना कहां है?"
"जी वह बाज़ार गई थी थोड़ा। अभी आती ही होगी।"
"हम्म...ये तुम्हारी मेमसाहब और साहब के बीच कुछ कहासुनी हुई थी क्या?"
"जी...जी साहब, छोटा मुंह बड़ी बात होगी लेकिन मेमसाहब और साहब के बीच कुछ ख़ास बनती नहीं थी।"
"हम्म ठीक है, जब तक जांच चलेगी तुम और तुम्हारी जोरू शहर छोड़कर नहीं जा सकते और जब भी पूछताछ के लिए बुलाया जाए, तुमलोगों को आना होगा।"
"जी..जी साहब।", उसने डरते हुए संक्षिप्त सा ज़वाब दिया।
डी ० एस० पी० अर्जुन रावत ने उस शख्स की लाश का मुआयना करते हुए कुछ तस्वीरें लीं और फिर एकबारगी कमरे का मुआयना करते हुए सरसरी सी नज़र दौड़ाई। कमरे में कहीं भी खून के धब्बे या कोई और निशान नहीं दिख रहा था। सभी सामान करीने से अपनी जगह पर लगे हुए थे। बेड पर बिछी बेडशीट भी बिल्कुल साफ थी और बेड पर सिलवट भी नहीं थी। ऐसा लग रहा था जैसे कत्ल करने के बाद लाश को बड़ी सावधानी से वहां लिटाया गया हो।
अगर कुछ था, जिससे कत्ल की वजह या सुराग का कुछ पता लगाया जा सकता था, तो वह बिस्तर के सामने वाली वह दीवार थी, जिस पर लाल रंग से लिखा हुआ था -
"अथ चैत्त्वमिमं धर्म्यं संग्रामं न करिष्यसि।
ततः स्वधर्मं कीर्तिं च हित्वा पापमवाप्स्यसि।।"
"सर इसका क्या मतलब हो सकता है?" इंस्पेक्टर अभिमन्यु ने दीवार की ओर ताकते हुए पूछा।
"ये श्रीमद्भगवद् गीता के दूसरे अध्याय का तैंतीसवा श्लोक है अभिमन्यु।" डी एस पी अर्जुन रावत ने बिना उसकी ओर देखे अपनी ठोड़ी पर हाथ फेरते हुए कहा।
"सर आपने श्रीमद्भगवद् गीता पढ़ी है?" इंस्पेक्टर अभिमन्यु ने थोड़ा हैरान होते हुए पूछा।
"अभिमन्यु, इस श्लोक का मतलब है कि धर्म की अधर्म पर जीत के लिए युद्ध ना करना पाप कर्म को करने जैसा ही है।"
"सर ये तो आठ साल के करियर में पहला कातिल देखा जो कत्ल करने के बाद गीता के श्लोक भी बताता है! वह ये सब कर के क्या साबित करना चाहता है!? मुझे तो यह थोड़ा सनकी लगता है।"
"हो सकता है, अभिमन्यु। लेकिन ये भी हो सकता है कि कातिल ऐसा कर के केवल हमारा ध्यान भटकाना चाहता हो।
भीड़ को यहां से हटाओ और लाश को जांच के लिए फोरेंसिक लैब भेजो। मिस्टर शर्मा की पत्नी और बेटे का नंबर लो और जितनी जल्दी हो सके उन्हें पूछताछ के लिए पुलिस स्टेशन बुलाओ।
और हां ये राजू और रत्ना का बयान भी ले लो।"
"जी सर।" उसने संक्षिप्त सा उत्तर दिया।
(लाश को फॉरेंसिक लैब भेजने के बाद कमरे को सील कर दिया गया।)
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"अभिमन्यु वो करन शर्मा वाले केस की क्या प्रोग्रेस है? कोई सुराग मिला?" डी एस पी ने फाइल में नज़रें गड़ाए हुए ही पूछा।
"नहीं सर। पूरा कमरा छान मारने पर भी कुछ हाथ नहीं लगा। और ये मिसेज़ शर्मा का नंबर भी नहीं लग रहा है। आस-पास वालों से पूछने पर पता चला है कि बैंगलोर जाने से एक रात पहले ये करन शर्मा और उसकी पत्नी का झगड़ा हुआ था। लोगों ने यह भी बताया कि अक्सर रात में उनके बंगले से मारने पीटने की आवाजें आती थीं।
और हां सर, एक बात और है जो थोड़ी अजीब लग रही है। सर वो जो गीता का श्लोक हमने वहां दीवार पर देखा था, मैंने उसकी लिखावट मैच करने के लिए वहां मौजूद सभी की लिखावट की एक कॉपी ली थी। हैरान करने वाली बात ये है कि वह लिखावट खुद करन शर्मा की लिखावट से मैच होती है।"
"क्या कह रहे हो अभिमन्यु!? इसका मतलब वो श्लोक करन शर्मा ने खुद लिखा था!...ऐसा कैसे हो सकता है! यह केस तो उलझता ही चला जा रहा है।"
"सर राजू और रत्ना को बुलाया है पूछताछ के लिए। वो दोनों अभी आते ही होंगे।"
तभी फ़ोन की घंटी ने सबका ध्यान आकर्षित किया।
"हैलो...हां एक मिनट"
"सर फोरेंसिक से डॉक्टर प्रिया का फ़ोन है।" सब इंस्पेक्टर शिवानी ने रिसीवर अर्जुन की तरफ बढ़ाते हुए कहा।
"हैलो डॉक्टर प्रिया.... ओके मैं आधे घंटे में पहुंचता हूं।" अर्जुन ने रिसीवर रखा और ड्राइवर से जीप निकालने को कहा।
"शिवानी, वो मिस्टर शर्मा के नौकर आएं तो तुम ज़रा देख लेना।" अर्जुन ने सब इंस्पेक्टर शिवानी की ओर मुखातिब होते हुए कहा।
"जी सर।"
अर्जुन और अभिमन्यु जीप में बैठकर फोरेंसिक लैब के लिए निकल पड़े।
क्रमशः