मुमकिन नहीं वो ख्वाब,
जो अक्सर आँखे देखा करती है
कोशिश करना काम है दिल का
धड़कने क्यों फिर धोखा करती है ?
ज़माने के हाथ,उठाना उंगली
क्यों ख़ामियां किसी की उजागर करती है ?
हो जाता हताश इन्सां भागदौड़ में,
बदनाम फिर उसको
क्यों शराब करती है ?
मयखाने की दहलीज
क्यों फिर अपने घर की
चौखट लगती है ?
उठना गिरना उसूल जिंदगी का
क्यों दुनिया फिर तमाशा करती है ?
वक्त के चाबूक से बचता नही कोई
क्यों दुनियाँ इस बात को
दरकिनार करती है ?
कवि उमेश लखपति " कृष्णा "