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कविता

12 जनवरी 2016

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मुमकिन नहीं वो ख्वाब,
जो अक्सर आँखे देखा करती है
कोशिश करना काम है दिल का 
धड़कने क्यों फिर धोखा करती है ?
ज़माने के हाथ,उठाना उंगली
क्यों ख़ामियां किसी की उजागर करती है ?
हो जाता हताश इन्सां भागदौड़ में,
बदनाम फिर उसको 
क्यों शराब करती है ?
मयखाने की दहलीज  
क्यों फिर अपने घर की 
चौखट लगती है ?
उठना गिरना उसूल जिंदगी का
क्यों दुनिया फिर तमाशा करती है ?
वक्त के चाबूक से बचता नही कोई
क्यों दुनियाँ इस बात को 
दरकिनार करती है ?
       
  कवि उमेश लखपति " कृष्णा "

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कविता

12 जनवरी 2016
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मुमकिन नहीं वो ख्वाब,जो अक्सर आँखे देखा करती हैकोशिश करना काम है दिल का धड़कने क्यों फिर धोखा करती है ?ज़माने के हाथ,उठाना उंगलीक्यों ख़ामियां किसी की उजागर करती है ?हो जाता हताश इन्सां भागदौड़ में,बदनाम फिर उसको क्यों शराब करती है ?मयखाने की दहलीज  क्यों फिर अपने घर की चौखट लगती है ?उठना गिरना उसूल जिं

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शायरी

13 जनवरी 2016
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इस कदर जज्‍बात को छेड़ा करो न रात दिन,हैं बड़े मासूम हम फिर चिड़च़िड़े हो जायें ना। अपनों की दुनिया में गड़े काँटों सी तन्हाईयाँ,इतना प्यार लूटा के भी कहीँ मिल जाए बेवफाई ना ।

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शायरी

24 जून 2016
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चाँद में तेरा अक्स ढूंढा है  मैने,खुद को पाकर तन्हाई में मेरी नजर में बस तू ही तू ,दिखती हो तुम मुझको मेरी परछाई में 

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कविता

17 अप्रैल 2017
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नन्ही सी लाडो मेरी,आ जुल्फे संवारूँ तेरी।बिखरे बालों को सुलझा दूँ।ओ प्यारी आ गुड़िया तुझे बना दूँ।ला कंघी दे दे तू मुझको,आ परी बना दूँ तुझको।तू देख मुझे खिलखिलाई,हां मैं ही हूँ तेरा भाई।ये प्रेम हमारा बना रहे,जन्म-2 तू मुझको भैया कहे।जब हो जायेगी तू सयानीकरेगी फिर तू मनमानी।ओ मेरी प्यारी बहना !तू नार

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