shabd-logo

खगोलशास्त्र और ज्योतिष - भाग 4

4 सितम्बर 2017

210 बार देखा गया 210

यह लेख मेरे द्वारा कुछ WhatsApp समूहों पर १८ अगस्त २०१६ से २७ नवम्बर २०१६ तक सम्प्रेषित चर्चा का संकलन है. पाठकों की सुविधा के लिए इसे 6 खण्डों में प्रकाशित कर रहा हूँ.


विषय का प्रवर्तन हुआ था एक उल्लेख से जो मैंने चलते चलते न जाने किस संदर्भ में किया था। मैंने कई सप्ताह पूर्व किसी संदर्भ में यूँ ही उल्लेख किया था सौर मंडल के गणितीय माडल का जिस पर आपमें से कुछ मित्रों ने स्नेहपूर्वक मुझसे आग्रह किया कि मैं इस विषय पर अपने विचार प्रस्तुत करूँ।


इसी विषय पर आज आपके समक्ष पुन: अपने विचार प्रस्तुत करने की धृष्टता कर रहा हूँ। आशा है कि आपमें से कुछ सदस्यों को यह प्रस्तुति रुचिकर लगेगी।


जिस उल्लेख के साथ यह चर्चा प्रारंभ हुई थी वह पूर्णत: वैज्ञानिक और गणितीय था किन्तु विषय विस्तार की प्रक्रिया में विषय को रोचक बनाने के उद्देश्य से मैंने यूँ ही इस विषय के ज्येतिषीय पक्ष का उल्लेख कर दिया था यह सोचकर कि एक दो संप्रेषणों के बाद मैं मूल विषय पर लौट आऊँगा किन्तु आपके रोचक प्रश्नों ने न सिर्फ इस पक्ष को कई सप्ताह तक जीवन्त रक्खा बल्कि मुझे भी इस दिशा में कुछ और स्वाध्याय की प्रेरणा दी।


यहाँ मैं यह स्पष्ट करना चाहूँगा कि ज्योतिष शास्त्र के दो पक्ष हैं- गणित ज्योतिष और फलित ज्योतिष और इनमें से मेरी रुचि एवं अध्ययन मात्र गणित ज्योतिष में है जबकि संभवत: फलित ज्योतिष एक अधिक प्रचलित एवं रुचिकर विषय है।


इस प्रस्तावना के साथ आज मैं मूल विषय पर लौटता हूँ जो है सौर मंडल का गणितीय माडल।


ग्रहों की चाल स्तिथि की गणना के लिये वैज्ञानिक दृष्टिकोण से हम जिस सिद्धान्त का प्रयोग करते हैं वह है कैपलर का सिद्धान्त।


कैपलर का प्रथम सिद्धान्त यह है कि ग्रह सूर्य का आवर्तन दीर्घ वृत्ताकार कक्षा में करते हैं। दूसरा सिद्धान्त यह है कि ग्रह समान समय में समान क्षेत्रफल तय करते हैं।


तीसरा सिद्धान्त मैं आप पर छोड़ता हूँ कि आपमें से जिन्हें इस विषय में रुचि हो वो इस पर अध्ययन करके इसकी जानकारी प्राप्त करें।


आज के लिये मात्र इतना ही शेष कल।


..................


कल के विषय को आगे बढ़ा रहा हूँ।


ग्रहों की स्थिति और चाल की गणना कैपलर के सिद्धान्तों पर आधारित है। इस गणना को सरलीकृत करते हुए कक्षीय आधार अंको (orbital elements) को प्रयोग करते हुए किया जा सकता है।


कुछ प्रमुख बातों का उल्लेख आवश्यक है। जैसा कि मैंने कल कहा था कि ग्रह सूर्य का आवर्तन दीर्घ वृत्तीय कक्षा में करते हैं इस कारण कक्षा में उनकी सूर्य से दूरी निरंतर परिवर्तित होती रहती है। जिस स्थिति में यह दूरी सबसे कम होती है उस स्थिति या अवस्था को perihelian कहते हैं।


Perihelian यूनानी शब्द है जिसका अर्थ है- peri अर्थात समीप और helious अर्थात सूर्य। इस प्रकार perihelian का अर्थ हुआ सूर्य के समीप।


अगला शब्द है aphelion, apo का अर्थ है दूरस्थित। इस प्रकार aphelion का अर्थ हुआ ग्रहों की वह स्थिति जब वह सूर्य से सबसे अधिक दूर हो।


इस प्रकार के अनेक तकनीकी शब्द हैं जिनका उल्लेख फिर कभी।


अब इस विषय की विषद गणितीय चर्चा में न जाते हुए यह मान लिया जाये कि किसी प्रकार से ग्रहों की स्थिति की गणना की जा सकती है जो मेरा शोध विषय है और मेरे द्वारा अब तक विकसित गणितीय माडल यह कर पा रहा है।


हर शोध कार्य का एक स्वप्न होता है। मेरे शोध कार्य का स्वप्न था ऐसे माडल का विकास करना जो ग्रहों की गति और स्थिति की न सिर्फ गणना करे बल्कि उसे त्रिआयामी दृश्य रूप में भी दर्शित कर सके।


जब मैंने इस विषय पर गणनाएँ प्रारंभ कीं तो MS Excel का उपयोग किया था किन्तु शीघ्र ही Excel की सीमाओं का भान हो गया। किन्तु इन सीमाओं को जानते और समझते हुए भी मैंने Excel पर ही इस माडल को विकसित करने की ठान ली और उसके लिये कुछ अतिरिक्त प्रयास भी करना पड़े तो उसे भी मैंने इस शोध कार्य का अंग मान लिया।


जब आप किसी कार्य को करने का संकल्प कर लेते हैं तो कोई न कोई मार्ग निकल ही आता है।

इसी प्रकार मुझे भी अंततोगत्वा और प्रयास पूर्वक Excel में त्रिआयामी animation विकसित करने का एक मार्ग मिल ही गया।


इस सफलता के बाद आज मैं उस स्थिति में पहुँच गया हूँ कि मेरा गणितीय माडल ग्रहों की गति और स्थिति की न सिर्फ real time गणना करता है बल्कि उन्हें त्रिआयामी दृश्य रूप में चलायमान (animated) रूप में भी दर्शाता है। यह Excel VBA के संयोग से संभव हो पाया है।


अगले चरण में मेरा उद्देश्य है कि ग्रहों की वैज्ञानिक आधार पर गणित इन स्थितियों को ज्योतिष की राशियों पर आरोपित (superimpose) किया जाये।


हर शोध कार्य का कोई मौलिक उद्देश्य होना चाहिये और इस विषय पर अब तक का मेरा अध्ययन यह कहता है कि अब तक ऐसा प्रयास नहीं हुआ है।


अब देखिये यह प्रयास इस शोध को कहाँ तक ले जाता है। इस शोध में मुझे एक ओर वराहमिहिर रचित सूर्य सिद्धान्त के अध्ययन का अवसर मिला और दूसरी ओर NASA द्वारा प्रकाशित ग्रहों की real time स्थितियों के अध्ययन का भी अवसर मिला। मेरा मानना है कि हम जीवन भर विद्यार्थी रहते हैं। गीता में वर्णित अनेक योगों में एक योग ज्ञानयोग भी है। इसी दिशा में यह एक तुच्छ प्रयास है। देखिये यह कहाँ तक ले जाता है।


इसके साथ मैं इस विषय पर चर्चा को यहीं विराम देता हूँ। आशा है कि यह चर्चा आपको रुचिकर लगी होगी। आपके धैर्य और आपके उत्साहवर्धन के लिये अनेकानेक धन्यवाद।


शेष अगले भाग में......

1

खगोलशास्त्र और गणित ज्योतिष - भाग 1

11 जुलाई 2017
0
1
1

यह लेख मेरे द्वारा कुछ WhatsApp समूहों पर १८ अगस्त २०१६ से २७ नवम्बर २०१६ तक सम्प्रेषित चर्चा का संकलन है. पाठकों की सुविधा के लिए इसे 6 खण्डों में प्रकाशित कर रहा हूँ.हम सब ने कभी न कभी आकाश में विचरण करते ग्रहों और नक्षत्रों का अवलोकन किया है। इस अवलोकन से हम सब के मानस में भिन्न

2

खगोलशास्त्र और गणित ज्योतिष - भाग 2

4 सितम्बर 2017
0
0
0

यह लेख मेरे द्वारा कुछ WhatsApp समूहों पर १८ अगस्त २०१६ से २७ नवम्बर २०१६ तक सम्प्रेषित चर्चा का संकलन है. पाठकों की सुविधा के लिए इसे कई खण्डों में प्रकाशित कर रहा हूँ.कल की चर्चा में कुछ बातें छूट गयीं थीं ।कल मैंने कहा था कि ज्योतिष में नव ग्रहों की स्थिति को १२ रा

3

वर्तमान परिप्रेक्ष्य में पं० दीनदयाल उपाध्याय का अंत्योदय दर्शन

4 सितम्बर 2017
0
1
0

यह लेख 20 अगस्त 2017 को युगभारती, कानपुर द्वारा आयोजित व्याख्यान में मुख्य वक्ता डॉ. सुधांशु त्रिवेदी जी के पूर्व विषय-प्रवर्तन करते हुए दिये गये मेरे भाषण का लिखित रूप है.भारतीय जनता पार्टी केराष्ट्रीय प्रवक्ता और आज के व्याख्यान के मुख्य वक्ता माननीय डॉ. सुधांश

4

खगोलशास्त्र और ज्योतिष- भाग 3

4 सितम्बर 2017
0
0
0

यह लेख मेरे द्वारा कुछ WhatsApp समूहों पर १८ अगस्त २०१६ से २७ नवम्बर २०१६ तक सम्प्रेषित चर्चा का संकलन है. पाठकों की सुविधा के लिए इसे 6 खण्डों में प्रकाशित कर रहा हूँ.आज की चर्चा के दो उद्देश्य हैं- एक पिछले सप्ताह की चर्चा को आगे बढ़ाना और दूसरा पिछले सप्ताह की च

5

खगोलशास्त्र और ज्योतिष - भाग 4

4 सितम्बर 2017
0
0
0

यह लेख मेरे द्वारा कुछ WhatsApp समूहों पर १८ अगस्त २०१६ से २७ नवम्बर २०१६ तक सम्प्रेषित चर्चा का संकलन है. पाठकों की सुविधा के लिए इसे 6 खण्डों में प्रकाशित कर रहा हूँ. विषय

6

खगोलशास्त्र और ज्योतिष - भाग 5

4 सितम्बर 2017
0
0
0

यह लेख मेरे द्वारा कुछ WhatsApp समूहों पर १८ अगस्त २०१६ से २७ नवम्बर २०१६ तक सम्प्रेषित चर्चा का संकलन है. पाठकों की सुविधा के लिए इसे 6 खण्डों में प्रकाशित कर रहा हूँ.आज की चर्चा का विषय है चन्द्रमा की कलाएँ जिन्हें अंग्रेज़ी में phases of moon कहते हैं। आपमें स

7

खगोलशास्त्र और ज्योतिष - भाग 6

4 सितम्बर 2017
0
3
2

यह लेख मेरे द्वारा कुछ WhatsApp समूहों पर १८ अगस्त २०१६ से २७ नवम्बर २०१६ तक सम्प्रेषित चर्चा का संकलन है. पाठकों की सुविधा के लिए इसे 6 खण्डों में प्रकाशित कर रहा हूँ.दो सप्ताह पूर्व की चर्चा में मैंने तिथिपत्र का संक्षिप्त उल्लेख किया था जिस पर कुछ टिप्पणियाँ भी प्राप्त हुईं थीं। उन टिप्पणियों का

8

भारतीय तिथिपत्र

15 सितम्बर 2017
0
2
3

भारतीय तिथिपत्र चाँद्र-सौर (LuniSolar) तिथिपत्र है जिसमें मास की गणना चंद्रमा की गति पर आधारित है और वर्ष सूर्य की गति पर।चंद्रमा को पृथ्वी की एक परिक्रमा करने में २७.३ दिन लगते हैं किंतु इस बीच पृथ्वी भी सूर्य की कक्षा में लगभग ३० अं

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए