यह लेख मेरे द्वारा कुछ WhatsApp समूहों पर १८ अगस्त २०१६ से २७ नवम्बर २०१६ तक सम्प्रेषित चर्चा का संकलन है. पाठकों की सुविधा के लिए इसे 6 खण्डों में प्रकाशित कर रहा हूँ.
आज की चर्चा का विषय है चन्द्रमा की कलाएँ जिन्हें अंग्रेज़ी में phases of moon कहते हैं। आपमें से कई सदस्यों को इस विषय का समुचित ज्ञान होगा। किन्तु कुछ सदस्य ऐसे भी होंगे जो संभवत: आज की चर्चा से लाभान्वित होंगे। आज की चर्चा उन्हीं सदस्यों को समर्पित है।
अमावस्या से पूर्णिमा तक और पूर्णिमा से अमावस्या तक हम चंन्द्रमा की ३० कलाओं का दृष्यावलोकन कभी न कभी कर चुके हैं। इसके पीछे के वैज्ञानिक पक्षों की चर्चा आज का विषय है।
चंद्रमा पृथ्वी का एक आवर्तन २७ दिनों में करता है और साथ ही अपनी धुरी पर भी इतने ही दिनों में घूमता है। इस कारण हमें सदैव चंद्रमा का एक ही पक्ष दिखाई देता है।
क्योंकि चंद्रमा के आवर्तन की दिशा और पृथ्वी के अपनी धुरी पर घूर्णन की दिशा एक ही है इस कारण पृथ्वी से हमें चंद्रमा का आवर्तन काल २९ दिन का प्रतीत होता है।
क्यूँकि पृथ्वी से देखने पर चंद्रमा का आवर्तन काल २९ दिन का प्रतीत होता है और क्यूँकि हमें चंद्रमा का एक ही पक्ष दिखाई देता है इस कारण हमें चंद्रमा के दृष्य पक्ष जिसे हम दृष्य गोलार्ध भी कह सकते हैं उस दृष्य गोलार्ध के दिवस और रात्रि हमें चंद्रमा की कलाओं के रूप में दिखाई देते हैं।
एक दिन जो पृथ्वी पर २४ घंटे का होता है वह चंद्रमा पर पृथ्वी के सापेक्ष २८ दिन का होता है।
कृष्ण पक्ष चंद्रमा की रात्रि का पक्ष है जो लगभग १५ दिन तक चलती है और इसी प्रकार शुक्ल पक्ष चंद्रमा के एक दिन के बराबर है।
आज के लिये इतना ही शेष फिर कभी।
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आज हम सबके प्रेरणा स्रोत आदरणीय आचार्य जी का भारतीय तिथि के अनुसार जन्मदिन है। इस संबन्ध में युगभारती के कुछ मंचों पर कुछ उहापोह की स्थिति भी दिखाई दी क्योंकि कुछ सदस्यों को यह उलझन थी कि उनकी जानकारी के अनुसार आदरणीय आचार्य जी का जन्मदिन २४ सितंबर को होता है। आज की चर्चा भी पिछली कतिपय चर्चाओं की भाँति ही द्विउद्देश्यीय है- पहला उद्देश्य आदरणीय आचार्य जी के जन्मदिन संबन्धी उहापोह के समाधान का एक क्षुद्र प्रयास और दूसरा कल की चर्चा को आगे बढ़ाना। पिछले कुछ सप्ताहों की चर्चा की भान्ति ही यह दोनों उद्देश्य एक ही उभयनिष्ठ चर्चा के माध्यम से परिपूर्ण हो सकते हैं। कल मैंने यह भी कहा था कि चन्द्रमा संबन्धित इतनी रोचक जानकारियाँ हैं कि जिनको लेकर महीनों चर्चा की जा सकती है। आज की चर्चा भी उसी चर्चा की श्रृंखला की एक कड़ी है।
दो प्रकार के तिथिपत्र ( calendar) संभव हैं - एक सौर्य और दूसरा चान्द्र (lunar). पश्चिमी तिथिपत्र सौर्य तिथिपत्र है जबकि भारतीय तिथिपत्र चान्द्र तिथिपत्र है।
भारतीय तिथिपत्र के अनुसार आज भाद्रपद मास की पूर्णिमा है जो आदरणीय आचार्य जी के जन्मदिन की चान्द्र तिथि है। यदि युगभारती के कुछ मंचों पर परिलक्षित उहापोह को सत्य माना जाये तो सौर्य तिथिपत्र के अनुसार उनके जन्मवर्ष पर सौर्य तिथिपत्र के अनुसार यह तिथि २४ सितंबर को पड़ी थी तो इन दोनों तिथियों को सत्य मानते हुए मेरी गणना के अनुसार आदरणीय आचार्य जी का जन्मवर्ष १९४२ होना चाहिये।
इसका संकेत आचार्य जी के पिछले कुछ उद्बोधनों से भी मिलता है। अभी कुछ ही दिन पहले आचार्य जी के ज्येष्ठ भ्राता जी का ८९ वाँ जन्मदिन मनाया गया और कभी आचार्य जी ने यह भी उल्लेख किया था कि उनके ज्येष्ठ भ्राता जी उनसे १५ वर्ष बड़े हैं। इस हिसाब से भी आचार्य जी का जन्मवर्ष १९४२ ही प्रतीत होता है।
२४ सितंबर १९४२ को भाद्रपद मास की पूर्णिमा थी और आज के दिन भी भाद्रपद मास की पूर्णिमा है। इसके अनुसार आचार्य जी का जन्मदिन भारतीय तिथिपत्र के अनुसार आज है और पश्चिमी अथवा सौर्य तिथिपत्र के अनुसार २४ सितंबर को पड़ेगा।
अब मन में यह सहज प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि किन वर्षों में भारतीय एवं पश्चिमी तिथिपत्रों की तिथियाँ एक ही दिन पड़ती हैं। सीधा और संक्षिप्त उत्तर यह है कि प्रत्येक १९ वर्ष के पश्चात। अर्थात जब आचार्य जी १९, ३८, ५७ वर्ष के हुए होंगे तब उनका जन्मदिन दोनों तिथिपत्रों के अनुसार एक ही तिथि पर पड़ा होगा। भविष्य में यह संयोग २०१८ वर्ष में पुन: आवर्तित होगा।
इस संयोग के पीछे की वैज्ञानिक चर्चा फिर कभी।
आज के लिये शुभरात्रि।