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जब कहीं मन नहीं लगता ।।।

6 मई 2019

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अक्सर जब कहीं मन नही लगता तो पार्क में आकर बैठ जाता हूँ! सुकून सा मिलता है! अक्सर भीड़ सी रहती हैं यहाँ! रोज़ कुछ न कुछ नया देखने को मिलता है! हर रोज़ नए चेहरे, नयी तरह से फ़ोटो खींचते लोग और अलग अन्दाज़ में पोज देते युगल! ५०-५५ साल के अंकल आंटी ईव्निंग वाक पे निकले हैं! कुछ बुज़ुर्ग दादा-दादी योगा करने नाकाम कोशिश कर रहे हैं!


सबके चेहरे पे एक अलग सा एक्स्प्रेशन है! कोई पहली बार आया है अपनी मोहतरमा के साथ तो कोई आज आख़िरी मुलाक़ात मुकम्मल कर रहा है! कोई उँगलियों का टाँका बना फँसा के आहिस्ता-आहिस्ता चल रहा तो कोई हाथ पकड़ के भागता हुआ! कोई ऑफ़िस ख़त्म करके आया है तो कोई अपने स्कूल कॉलेज बंक करके! एक छोटा सा बच्चा भी है जो एक ग़ुब्बारे वाले को देख रहा तो एक बार अपनी अम्मा को! और धीरे धीरे टनकता हुआ ग़ुब्बारे वाले के पास पहुँच गया! इस उमर में ग़ुब्बारे का मोह अम्माँ-बाबू के मोह से ज़्यादा होता है! एक छोटी सी बच्ची है जो झूले वाली रेलिंग को पकड़ के लटक रही है और खिलखिला के हंस रही है! शायद इसे ही कहते हैं ओरिज़िनल हसीं!


कई(ज़्यादातर) जोड़ें हैं! कुछ इधर उधर ताक के झट से उनके गालों को झटके से चूम ले रहें हैं और कुछ सुकून में चूमने के लिए कोना ढूँढ रहे हैं! लड़कों का कुछ झुंड प्रेमी युगल के आस-पास ही मँडरा रहा है, शायद कोई लीला देखने को मिल जाए! पार्क में की झूले लगे हुए हैं! शौक़िया लड़के-लड़कियाँ उसके उसके इर्द-गिर्द पोज(जैसे ताजमहल के गुम्बद को पकड़ने वाला) दे रहें हैं! गुटका खाने वाले लौंडे पीक मारने के लिए कोना ढूँढ रहे हैं!


लड़कियाँ सेल्फ़ी ले रहीं है! लड़के चुपके चुपके सेल्फ़ी लेती लड़कियों की फ़ोटो खींच रहे हैं! डूड लौंडे अंधेरे में भी नक़ली रे-बैन लगा के पार्क में लेट-बैठ के फ़ोटू खिंचा रहे हैं उनका गबरू डूड दोस्त उनको इस कृत्य के लिए प्रोत्साहित कर रहा है!


और हम साले को अकेले बैठ के लिख रहे हैं, ओबसर्वेशन कर रहें हैं! तुम्हें मिस कर रहें हैं! तुम्हें याद कर रहे हैं! सोच रहें हैं कहीं तुम दिख जाओ शायद!


इन सब चीज़ों के बीच, ध्यान , पार्क में लगी हुई एक बेंच पर जाता है।

कभी तुम्हारे साथ बैठे थे उसी बेंच पर।

घंटो बातें की थीं।


वो सोच इतनी गहरी है कि सोचते सोचते उसी दिन में पहुँच गया हूँ।

नवंबर का महीना है।


मैं और तुम उसी बैंच पर बैठे हैं।

Superman वाली t-shirt में गज़ब लग रही हो तुम । 😍😍


मैं उठके हमारे पास जाता हूँ।

वहीं उसी सीट के पास नीचे घास में बैठकर हमारी बातें सुनने की कोशिश कर रहा हूँ।


आवाज़ धीमी है।

तुम एक लड़के के बेरे में मुझे बता रही हो।


तुम्हें वो पसंद है।

वो बात मुझे उस दिन भी पसंद नहीं थी।

और आज भी दिल में तीर की तरह लग रही है।


थोड़ा इत्मिनान है कि अब वो लड़का नहीं है तुम्हारी ज़िंदगी में।


थोड़ी देर बातें ऐसे ही चलती हैं।

फ़िर.......


फ़िर तुम उठके जाने लगती हो।।

तुमसे न जाने के लिए कह रहा हूँ मैं।


पर तुम फ़िर आने का झूठा वादा करके जा रही हो।


तुम उठके पार्क के गेट पे पहुँच गई हो।

तुम्हें रोकते रोकते रोकते मैं भी तुम्हारे पीछे जा रहा हूँ।


पर कोशिशें नाकाम हैं ।


अपने आप को आपको रोकने में नाकाम होता देख मैं उठता हूँ।


गेट की तरफ भागता हूँ,

चिल्ल्ता हूँ ज़ोर से

तुम्हारा नाम


रा... ...


और रो पड़ता हूँ।।


पीछे से हँसने की आवाज़ें आने लगती हैं।

सब मुझे देखकल हँस रहे हैं।


मैं पीछे मुड़के उन्हें देखता हूँ और फिर जब वापस गेट की तरफ मुड़ता हूँ।


तो तुम वहाँ नहीं हो।

मैं भी नहीं हूँ।


तुम चली गयी हो।

चली तो तुम उसी दिन गई थीं।


मैं वहाँ तब भी रोता हुआ खड़ा था।

अब भी हूँ।


वापस पार्क में नहीं जाना चाहता ।

सब हँसते हैं मुझपे वहाँ।


तो उसी गेट से निकलके बाहर आ जाता हूँ।


अब पार्क में भी मन नहीं लगता।


तो अक्सर जब कहीं मन नहीं लगता तो बस सहन करता हूँ....... ।।।।।।

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