बावड़ी के पानी का रंग बदल रहा था . बावड़ी के अंदर आता सूर्य का प्रकाश धीरे धीरे कम हो रहा था .अँधेरे में बावड़ी की सीढ़ियां और लम्बी नज़र आरही थी . और अभी तक जहा खामोशी थी. बावड़ी में से घुंगरू की आवाज़ आ रही थी डर कर संजना ने इधर उधर देखा तो कोई नहीं था . उसने वहाँ से निकल जाना ही ठीक समझा जैसे ही संजना ने बावड़ी से बाहर जाने के लिए पेअर बढ़ाया बावड़ी से एक हाथ निकला और उसने उसके पैरों को पकड़ लिया अपने पैरो को छुड़ा कर संजना सीढ़ियाँ चढ़ रही थी . मगर यह किया सीढियाँ ख़तम ही नहीं हो रही थी . डर की वजह से उसकी चीख निकल गई, किया हुआ संजना कियु चीख रही थी वह बावड़ी मुझे पकड़ रही थी बचाओ मुझे बचाओ बृजेश ने उसको ज़ोरो से हिलाया और कहा होश में आओ तुम कही नहीं हो . तुम घर पर ही हो , संजना ने जब आँखें खोली तो वह बावड़ी में नहीं बल्कि अपने घर पर ही थी और अपने बिस्तर पर ही थी बृजेश मैंने अभी बहुत डरावना सपना देखा में एक बावड़ी के अंदर से बहार नहीं निकल पा रही थी बृजेश ने कहा न जाने तुम्हए कीउ पुराने कोए बावड़ी से इतना प्यार है ना जाने जब देखो इनकी तलाश में घूमती रहती हो पहले तो रात में ही बड़बड़ करती थी पर अब तो दिन में भी शुरू हो गई ओखरे घड़े हुए मुर्दे ओखारो संजना ने कहा अगर तुम्हे मेरे प्रोफेशन से इतनी ही दिक्कत थी तो एक पुरातग विशेषगये से शादी ही क्यूँ की
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