बस यार बहुत हो गया, दो साल से ज्यादा हो गये, अब नही सहा जाता, अब लगता है तलाक देना ही पड़ेगा, किन्तु बच्चों के बारे में सोचकर असमंजस में पड़ जाता हूँ। इस तरह बोलकर विनय चुप हो गया और उसकी आंखे भर आयी।
यह कहानी है मेरे प्रिय मित्र विनय की। विनय और रीमा का विवाह १० साल पहले धूम-धाम से हुआ था I दोनों कॉलेज के समय से ही एक दूसरे को पसंद करते थे, परिवार वाले सुरुवात में राजी नहीं थे, किन्तु एक दूसरे पर अपना ह्रदय लुटा चुके दोनों आखिर किसकी सुनने वाले थे । चार साल चले प्रेम प्रसंग के बाद एक दिन दोनों विवाह के बंधन में बन्ध गए I दोनों अत्यंत खुश थे, विवाह के दिन तो उनकी ख़ुशी का कोई ठिकाना न था, आखिर इतनी जद्दोजहद के बाद जो हुआ था ।
दोनों की पारिवारिक जीवन की रेलगाड़ी शांति से चल रही थी और जीवन के इसी सफर में घर में दो सुन्दर बच्चों का भी आगमन हो गया I अपने जीवन में व्यस्त विनय से समय-समय पर बात हो जाती थी किन्तु कुछ सालों में विनय और मेरी बातें कुछ कम हो गयी थी, वजह उसकी आर्मी की नौकरी और मेरी कॉर्पोरटे की नौकरी की बाध्यताओं ने हमारे बिच वार्तालाप के अंतराल को बढ़ा दिया था I पिछले दिनों मेरा विनय के शहर जाना हुआ और लम्बे समय बाद आपस में मिलकर पुराने दिनों को दोनों ने खूब याद किया। बात धीरे- धीरे कॉलेज से नौकरी और नौकरी से परिवार पर आयी तब विनय थोड़ा मायूस हो गया, अपने पारिवारिक जीवन की कठिनाइयों को साँझा करता विनय ने तलाक़ की बात छेड़ दी I
शुरूआती कुछ ही साल विनय का पारिवारिक जीवन खुशनुमा चला, फिर धीरे धीरे जैसे खुशियों में ग्रहण लगने लगा, समय के साथ दोनों के व्यवहार में एक दूसरे के प्रति परिवर्तन आने लगे और आये दिन दोनों के बीच की छोटी- छोटी नोकझोंक बड़े विवादों में बदल गयी, अब संबंधों का समीकरण बदला हुआ दिखने लगा उस पर जान लुटाने वाली और हर पल उसकी सभी जरूरतों का ध्यान रखने वाली पत्नी अब बात-बात पर चिढ़ जाती, छोटी छोटी बातों को लेकर दोनों के बीच मनमुटाव हो जाता और विवाद की स्थिति भी बन जाती । विनय पहले तो उसके बदले व्यवहार को समझ नही पाया क्योंकि वह सीधे कुछ न कहती किन्तु उसके मनोभाव और व्यवहार यही बयान कर रहे थे कि वह विनय से खुश नहीं थी I विनय के अनुसार उसने परिस्थिति को संभालने का अत्यंत प्रयत्न किया किन्तु बात न बनी, अब आये दिन दोनों बीच लम्बे - लम्बे झगडे होते रहते है और विनय तलाक को समाधान के रूप में देख रहा है।
विनय के परिवार की तरह अनेक ऐसे परिवार है जहां किसी न किसी कारणवश पति - पत्नी के बीच दरार पड़ जाती है और अनेकों बार तलाक की भी नौबत आ जाती है। भारत जैसे देश में जहां विवाह को सात जन्मों तक निभाने वाले रिस्ते की संज्ञा दी जाती थी वह अब इतना नाजुक हो गया है कि कब टूट जाए कहा नही जा सकता। तलाक की कल्पना भी न करने वाला भारतीय समाज आज पश्चिम के तलाक संस्कृति से कदम मिलाता दिख रहा है I पारिवारिक मनमुटावों का हल तलाक के रूप में देखा जाने लगा है।
पारिवारिक समबन्धो में कड़वाहट, झगडे, तलाक से आये दिन टूटते रिश्ते, आज के समाज के सामान्य पहलू बनते जा रहे है, रिश्तों से प्रेम रस गायब होता जा रहा है I किसी भी संबंध की प्रगाढ़ता उस संबंध में निहित प्रेम के आदान प्रदान से होती है। समाज मे रिश्तों को आधार देने का मुख्य दायित्व स्त्रियों को है। रिश्ते का आधार प्रेम होता है और स्त्री को भारतीय संस्कृति प्रेम की प्रतिमूर्ति की तरह पूजती है। वे रिश्तों को जोड़कर रखने वाली डोरी है और उसका प्रेम रिश्तों में रस का आस्वादन कराता है। समाज के सञ्चालन का कार्य अगर पुरुषों का है तो स्त्री उसका आधार है I रिश्ते और प्रेम का संबंध गुलाब जामुन और चासनी जैसा है, अगर रिश्ता गुलाब जामुन है तो प्रेम चासनी है। बिना चासनी के गुलाब जामुन का कोई अर्थ नही। रिश्तों की डोरी अगर टूट जाये तो प्रेम धरासाई हो जाता है। प्रेम रिश्तों में रस डालता है।
यह सामान्य रूप से देखा गया है की लम्बे समय तक चलने वाले अनेकों प्रेम प्रसंग जो बाद में विवाह का रूप लेते है और अच्छी तरह से जाँच परखकर, ज्योतिष का सहारा लेकर रचाये गए विवाहों में भी विवाद की स्थितियां बनती है I सुरुआत में जीवनसाथी के सारे गुण, सारे क्रियाकलाप अच्छे दिखते है और उन्हें लगता है कि दोनों एक दूसरे के लिए आदर्श जीवनसाथी है, किंतु धीरे धीरे एक के बाद एक नकारात्मक व्यवहार, आदतें और गुण दिखाई देने लगते है I एक सर्वे के अनुसार केवल 1.2 प्रतिशत पति - पत्नी ने स्वीकार किया कि उन दोनों के बीच किसी भी प्रकार का विवाद नही है।
ऐसा क्या हो जाता है कि एक मनभावन प्रेमसंबंध में दुख, असन्तुष्टि और घृणा भर जाती है और इस हद तक कि जीवनसाथी के सारे सकारात्मक गुण भी नकारात्मक दिखाई देने लग जाते है? एक मनोवैज्ञानिक विश्लेषण के अनुसार शारीरिक संबंधों को छोड़कर, जीवन साथी और मित्रों के साथ व्यावहारिक सम्बन्ध काफी हद तक समान होते है I प्रत्येक व्यक्ति के एक से अधिक मित्र होते है, अलग - अलग मित्रों के साथ साथ हमारे अलग अलग तरह के समीकरण होते हैं, जैसे एक मित्र घूमने साथ जाने के लिए सर्वोत्तम हैं , दूसरा हास- परिहास के लिए सर्वोत्तम हैं, तीसरा किसी भी समय सहायता के लिए सर्वोत्तम हैं इत्यादि I सभी मित्र अलग-अलग गुणों में पारंगत होते हैं, केवल एक मित्र सारे आयामों को पूर्ण नहीं करता I विवाह के पश्चात जब मित्रों से दूरी बढ़ती है तब एक साथी दूसरे साथी में सभी मित्रों के अपेक्षित गुण खोजने लगता है। यहां से समस्या का जन्म होता है I
कुछ समस्याएं सार्वभौमिक होती है, वे जीवन से कभी नहीं हटाई जा सकती, उसी तरह वैवाहिक संबंधों में समस्याएं टाली नहीं जा सकती किन्तु उन समस्याओं से जूझने के बजाय उसका विश्लेषण कर समाधान के ऊपर कार्य किया जाये तब जीवनसाथी के साथ सम्बन्ध मधुर बना रहेगा I
एक प्रेम संबंध को सुद्रण बनाये रखने के लिए कुछ हद तक दोनों जीवनसाथियों को समझौता करने की आवश्यकता होती है। उदाहरण के लिए उन दोनों को भोजन में क्या लेने की इच्छा है? किस तरह का कार्यक्रम देखना है? क्या कार्य करना है ? एत्यादी, अनेक बड़े -छोटे निर्णयों में दोनों के मत भिन्न हो सकते है । इस परिप्रेक्ष्य में अनेकों बार दोनो में से कोई भी पूर्ण रूप से नही सामझ पाता कि दूसरा साथी क्या चाहता है या चाहती है और इस तरह घनिष्ट संबंध रखने और स्वयम की स्वंतंत्र इच्छा रखने के बीच चुनाव की स्थिति बनती है, जो तनाव को जन्म देती है I
जो साथी तनाव के कारण पर चिंतन कर उसे सकारात्मक रूप से कम करने पर जोर देतें है वे उन लोगों से संबंधों में ज्यादा संतुष्ट होते है जिनकी तनाव समाधान क्षमता नकारात्मक या अलग होती है। यह सम्पूर्ण विश्वास होना चाहिए कि विवादों को टालना ही उस से निपटने का सबसे तर्कसंगत तरीका है। सामान्यतः वैवाहिक रिश्तों में सबसे बड़ी समस्या यह है कि अपने साथी की नकारात्मक बातों और कार्यों को उतनी ही नकारात्मक रूप से उत्तर देना। किन्तु जो व्यक्ति लंबे समय तक के परिणामो को सोच कर चलता है तब उसे संबंध में रचनात्मक प्रतिक्रिया मिलने के ज्यादा आसार होते है।
मशहूर पारिवारिक सम्बन्ध मनोवैज्ञानिक लेर्नर के अनुसार "वह व्यक्ति जो मित्रवत, समर्पण, समानता और सकारात्मक प्रभाव के लिए प्रयास करने पर ज्यादा ज़ोर देता है वह ज्यादा खुश होता है। बूढ़े लोग जो लंबे समय से विवाहित है वे नवविवाहित और मध्यम आयु के जोडो से ज्यादा सकारात्मक प्रभाव उत्पन्न करते है । और यह इसलिए भी होता कि लोग उम्र बढ़ने के साथ ज्यादा समझदार और विनम्र होते जाते है। अर्थात रिश्तों में विनम्र व्यावहरिकता पारिवारिक जीवन की सफलता का रहस्य है I"
भारतीय वैदिक संस्कृति के परिप्रेक्ष्य से देखें तो प्रेम का आधार शारीरिक या मानसिक आत्मतुष्टि नही किन्तु निश्वार्थ सेवा है। पति पत्नी के बिच सम्बन्ध का आधार अगर उनकी इस चेतना पर टिका है कि मेरा पति मेरा कितना खयाल रखता है या मेरी पत्नी मेरा कितना खयाल रखती है तब इसे प्रेम का नाम नहीं दिया जा सकता । यह चेतना आत्मकेंद्रीय है। "मेरे जीवन साथी की खुशी में ही मेरी खुशी है, चाहे इसके लिए कष्ट ही क्यों न झेलना पड़े।" जब पति पत्नी की चेतना का यह स्तर हो तब ही यह वास्तविक प्रेम का पर्याय बनता है । उदाहरण : नल-दमयंती, सत्यवान - सावित्री, पांडव - द्रौपदी एवं अनन्य I
अगर रिश्ते में केवल एक और से समर्पण है और दूसरा पक्ष उसे केवल अधिकार मानकर चल रहा है तब वह केवल शोषण को जन्म देगा I अतः संबंधों में समर्पण दोनों और से आवश्यक है। इसलिए अपने जीवनसाथी की खुशी में ही अपनी ख़ुशी होने का भाव संबंधों को जीवनपर्यन्त मधुर रख सकता है । उत्साहमय प्रेम से ज्यादा त्यागमय प्रेम की अधिक आवश्यकता है। यही खुशहाल पारिवारिक जीवन का रहश्य है I