किशोरावस्था में बच्चे जब ऐसी स्थिति पर होते हैं जब ना बड़ों में गिने जाते हैं ना बच्चों में।
उनकी मनःस्थिति उनके मां-बाप के सिवाय कोई समझ नहीं पाता।
जो उनको सही रास्ता दिखा सके। कभी-कभी इसी समय में अगर मां-बाप का साथ नहीं होता है।
और बच्चे को कोई गलत रास्ता दिखा देता है ,या वह गलत संगत में पड़ जाता है तो अंधेरी गलियों में अंधेरे रास्तों में भटकने लगता है।
इसीलिए किशोरावस्था में बच्चों को संभालना और उनको समझना हर मां-बाप की बहुत बड़ी जवाबदारी है। जो उन्हें अच्छी तरह निभानी चाहिए। ताकि बच्चे सही रास्ते पर रहे हैं।
और उन्हें जिंदगी का उजाला हो।
मैं यह नहीं कहती कि सब बच्चे अपना रास्ता भूल जाते हैं।
मगर रास्ता दिखाने वाला कोई तो चाहिए।
सही रास्ता दिखाने वाले की बहुत जरूरत रहती है।
ताकि बच्चे सीधी लाइन पर चलें कोई नशा कोई व्यसन ना करें।
और अपनी जवाबदारी समझते हुए चले यह मेरी सोच है। जब मैं छोटे-छोटे बच्चों को सिगरेट पीते हुए देखती हूं मेरा मन बहुत दुखी होता है उनके मां-बाप को उनकी तरफ ध्यान देने की जरूरत रहती है। अति विश्वास भी बहुत बुरा होता है।
कहानी जो सच्ची है।
वह इतना प्यारा बच्चा इतना होशियार बच्चा था।
छोटी सी उम्र में ही बड़ी-बड़ी कंपनियों ने उसको कंप्यूटर के एग्जाम देने दिए और कंप्यूटर का ग्रेजुएट बनाया।
सब कुछ अच्छा चल रहा था ।
स्कूल भी अच्छी थी पढ़ने में भी अच्छा था ।
इसी समय में वह ट्वेल्थ में आया ।
और उसकी मां को जॉब के सिलसिले में विदेश जाना पड़ा वह 2 साल के लिए।
पीछे बच्चे को दादा-दादी और नाना-नानी और पिता के भरोसे छोड़ कर गई।
इकलौता बच्चा इतना होशियार कि 14 साल की उम्र में ही माइक्रोसॉफ्ट और 1,2 कंपनियों की कंप्यूटर एग्जाम पास करके ग्रेजुएशन करा। और साथ में पढ़ाई कर रहा था।
मां के जाने के बाद दादी सोचती नानी संभालेगी।
नानी सोचती दादी संभालेगी दोनों के घर पास पास थे ।
पिता इस बात से बेखबर वह तो अपने आप में मस्त सोचते बच्चे की नानी दादी तो संभाली रही है।
मेरी क्या जरूरत है कभी पूछ लेते बस।
इसी अरसे में बच्चा गलत संगत में पड़ गया।
15 साल की उम्र में सिगरेट और नशे का आदी हो गया।
किसी को मानता ही नहीं डांस पार्टी लेट नाइट घूमना लड़कियों के साथ घूमना।
पढ़ाई नहीं करना वह सब चलता रहा। घर वालों ने इतना ध्यान ही नहीं दिया। मां फोन करती उसको बोलती उसके बारे में पूछती तो बोलते सब ठीक है सब ठीक है।
इतना कुछ दिखा नहीं।
जब वह वापस आई और उसने अपने इतने होशियार बच्चे के पतन को देखा।
वह तो इतनी दुखी हो गई बहुत संभालना पड़ा उसको ।
अपने बच्चे को वापस लाइन पर लाने में तीन चार साल लग गए।
किसी को कहे तो भी किसको कहे। जब किसी ने ध्यान ही नहीं दिया कि बच्चा क्या कर रहा है।
उसके मन में इतना अपने प्रति ग्लानि हो गई कि ऐसा पैसा किस काम का कि बच्चे को राह भटका दे।
मां की अथक कोशिशों के कारण बच्चा जो अब तो बड़ा हो चुका था अट्ठारह 19 साल का वापस लाइन पर आया वापस उसने पढ़ाई चालू करी और पुराने सर्टिफिकेट और वापस प्रैक्टिस और अच्छी तरह पढ़ाई करने के चलते वापस उसको जिंदगी की रोशनी प्राप्त हुई। बीच के तीन-चार साल बिगड़ गए मगर वापस लाइन पर आ गया और अच्छी नौकरी मिली। बच्चे को अंधेरे की गलियों से निकालकर रोशनी में लाने में तीन चार साल लग गए जो उसके वैसे ही बर्बाद हो गए ।
और उसकी मां भी डिप्रेशन में आ गई वह भी क्या करती बहुत मुश्किल से सब संभाल पाई।
इसीलिए कहते हैं किशोर होते बच्चों को ध्यान रखना।
उनको सही रास्ता दिखाना।
उनकी गलत हरकतों पर नजर रखना हर मां बाप के लिए बहुत जरूरी है। यह एक सच्ची घटना है जो मैंने कहानी रूप में आपसे शेयर करी है।
स्वरचित सत्य रचना 17 नवंबर 21