बात 1978 मैंने पैथोलॉजी के डिप्लोमा ट्रेनिंग के लिए लिए हॉस्पिटल जॉइन करा था ।
वहां एक बुजुर्ग थे क्लास 4 सफाई कर्मचारी ,वार्डबॉय सब लोग उनसे बहुत इज्जत से बात करते थे ।
वे हम लोगों को लैब में मदद करते थे।
वे भी सबको बहुत मान सम्मान करते थे और बहुत अच्छे से बात करते थे मैं नयी थी ।
मुझे कुछ पता नहीं था।
थोड़े दिनों के बाद एक हैंडसम सा लड़का उनसे मिलने आया।
उसने मुझसे उनका इज्जत से नाम लेकर पूछा मैंने कहा अंदर होंगे ।
मैंने कहा रुको मैं बुला देती हूं।
मैं उनको बुला करके लेकर आई।
तब तक हमारे साथ की मैडम भी आ गई उन्होंने जो आए थे उनको बहुत इज्जत से ऑफिस में बिठाया।
जैसे ही वह काका आए उस लड़के ने उठ करके उनके पांव छुए। और उनके गले लगा दोनों की आंखों में पानी था।
मुझे तो कुछ भी समझ में नहीं आया। जब वह चला गया फिर मैंने मैडम से पूछा तब मैडम ने बताया यह इनका लड़का है।
पढ़ने में बहुत होशियार था ।
यहां के डॉक्टर जो डीन थे उन्होंने इन काका को समझाया कि आप थोड़ी मेहनत करो।
बच्चे को डॉक्टर बनाओ ।
बहुत होशियार है बहुत नाम कमाएगा। उन्होंने बात मानी बच्चे के भी आंख में बहुत सपने थे आसमान की बुलंदियां छूने के।
उसने एमडी यहां से करा और डीएम पढ़ाई करने के लिए मुंबई गया था। वहां से पूरी पढ़ाई करके अपने पापा से मिलने उनके कार्यस्थल पर आया था।
उसको इस बात की कोई शर्म नहीं थी कि उसके पापा एक बोर्ड बॉय हैं। बल्कि उसको इस बात का फक्र था कि उसके पापा ने इतनी मेहनत करी।
और सही समय सही दिशा दिखा कर उसको आसमान की बुलंदियां छूने के लिए भेज दिया।
फिर मैंने मेरे पति से बात करी तब उन्होंने कहा हां इनका लड़का पढ़ने में बहुत होशियार था।
हमारे साथ दूसरी ब्रांच में एमडी करी है और डीएम करने मुंबई गया था । डीएम पूरी हो गई होगी।
इसलिए आया है वो काफी खुश था। काफी अच्छा नाम कमाया उसने
उसने काफी अच्छा डॉक्टर है।
अब तो बहुत साल हो गए पता नहीं कहां होगा। आज देखकर यह घटना याद आ गई।
स्वरचित सत्य 1 नवंबर 21