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कोई रोता है।

13 सितम्बर 2020

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क्यों मुझको ऐसा लगता है?,

दूर कहीं कोई रोता है।

कौन है वो? ,मैं नही जानता,

पर मुझको ऐसा लगता है,

दूर कोई अपना रोता है।

क्योंमुझको ऐसा लगता है?

दूर कहीं कोई रोता है।

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पर्वत की हरी-भरी वादियाँ

सर्पाकार सड़क होती हैं।

जाने कितने ही मोड़ों से,

यूँ तो मैं अक्सर हूँ गुजरता।

पर एक मोड़ पर ना जानेक्यों ?

मेरा मन अविरल रोता है।

क्यों मुझको ऐसा लगता हैं?

देर कहीं कोई रोता है।

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कौन है वो ?मैं नही जानता।

पर कोई अपना लगता है।

शायद पिछले जन्म का कोई,

उससे मेरा गहरा रिश्ता है।

कुछ भी तो स्पष्ट नही है।

एक धुंधला चेहरा दिखता है।

दूर कहीं कोई रोता है।

क्यों? मुझको ऐसा लगता है।

(समाप्त)
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रचनाएँ
Kavihimanshupathakpahadi
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मेरा ये पेज ,आप लोगों के लिये ही है जिसके माध्यम से मैं ,साहित्य की विभिन्न विधा के द्वारा मै आप लोगों के साथ जुड़ सकूँ। व समय पर सामाजिक,राजनैतिक व सांस्कृतिक विषयों के कुछ अनसुलझे पहलुओं को छू सकूँ तथा आपके समक्ष रख सकू। धन्यवाद कृते-हिमाँशु पाठक
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पथिक

3 सितम्बर 2020
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(1)वो घर से निकला पीने को, मानो अंतिम पल जीने को।उसे अंतिम सत्य का बोध हुआ। मानो अंतिम घर से मोह हुआ।सोते बच्चों को जी भर देखा, सोती बीबी के गालों को चूमा,माँ-बाप को छूपकर देखा, चुपके सोते चरणों को पूजा।कुछ पैसे

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कोई रोता है।

13 सितम्बर 2020
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क्यों मुझको ऐसा लगता है?, दूर कहीं कोई रोता है।कौन है वो? ,मैं नही जानता, पर मुझको ऐसा लगता है,दूर कोई अपना रोता है। क्योंमुझको ऐसा लगता है?दूर कहीं कोई रोता है। 2पर्वत की हरी-भरी वादियाँ

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कोई रोता है।

13 सितम्बर 2020
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( 1)क्यों? मुझको ऐसा लगता है। दूर कहीं कोई रोता है।कौन है वो? मैं नही जानता। पर,मानो अपना लगता है।कहीं दूर कोई रोता है। मुझसे मेरा मन कहता है। ( 2)अक्सर अपनी तन्हाई में, ध्

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सफर यादों का

6 अक्टूबर 2020
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तेरा धरती से यूँ जाना, मेरा धरती में रह जाना ।अखरता है मुझे हर पल, तेरा मुझसे बिछुड़ जाना ।मेरी साँसों में तेरा नाम, मेरी धड़कन में तेरा नाम ।मेरे ख्वाबों में तू ही तू,

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यादों की महफिल

7 फरवरी 2021
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आओ ना बैठो ना कुछ पल ही सही साथ बिताओ ना । आप हो हम हों,बातों की महफिल हो और ठहाके हो।यादों के फूल खिले हो, और सुगंध से मन प्रफुल्लित हो ।और साथ-साथ गरमागरम चाय हो,आलू के गुटके हो।गुड़ की डली के साथ चाय की चुस्की हो,और संग हो।अपनों की संगति,

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