shabd-logo

कोई रोता है।

13 सितम्बर 2020

504 बार देखा गया 504

( 1)

क्यों? मुझको ऐसा लगता है।

दूर कहीं कोई रोता है।

कौन है वो? मैं नही जानता।

पर,मानो अपना लगता है।

कहीं दूर कोई रोता है।

मुझसे मेरा मन कहता है।

( 2)

अक्सर अपनी तन्हाई में,

ध्यानमग्न मैं जब भी होता।

अंतर के भावना की लहरों में,

बहता कहीं मैं दूर निकलता।

तो मुझको ,क्यों ऐसा लगता?

कहीं दूर पर कोई रोता।

( 3)

पर्वत की हरी-भरी वादियाँ,

सर्पाकार सड़क से।गुजरता।

पर एक मोड़ पर जब मैं पहूँचता।

मन कहता अब यही ठहर जा।

तब मुझको ऐसा लगता है।

मानो इस मोड़ से मेरा।

सदियों से कोई रिश्ता है।

यही कहीं कोई रोता है।

(4)

जब भी इस मोड़ पर आता।

ऐसा लगता कोई बुलाता।

गोरा रंग है,लाल अम्बर है।

शर्मिला सा वो दर्पण है।

बहुत गौर से देखता उसको।

पर मुझको ये भ्रम लगता है।

एक धुंधला चेहरा दिखता है।

ना जाने क्यों ये लगता है?

कई जन्मों का ये रिश्ता है।

क्यों ?मुझको ऐसा लगता है।

दूर कहों कोई रोता है।

(समाप्त)


5
रचनाएँ
Kavihimanshupathakpahadi
0.0
मेरा ये पेज ,आप लोगों के लिये ही है जिसके माध्यम से मैं ,साहित्य की विभिन्न विधा के द्वारा मै आप लोगों के साथ जुड़ सकूँ। व समय पर सामाजिक,राजनैतिक व सांस्कृतिक विषयों के कुछ अनसुलझे पहलुओं को छू सकूँ तथा आपके समक्ष रख सकू। धन्यवाद कृते-हिमाँशु पाठक
1

पथिक

3 सितम्बर 2020
0
1
0

(1)वो घर से निकला पीने को, मानो अंतिम पल जीने को।उसे अंतिम सत्य का बोध हुआ। मानो अंतिम घर से मोह हुआ।सोते बच्चों को जी भर देखा, सोती बीबी के गालों को चूमा,माँ-बाप को छूपकर देखा, चुपके सोते चरणों को पूजा।कुछ पैसे

2

कोई रोता है।

13 सितम्बर 2020
0
0
0

क्यों मुझको ऐसा लगता है?, दूर कहीं कोई रोता है।कौन है वो? ,मैं नही जानता, पर मुझको ऐसा लगता है,दूर कोई अपना रोता है। क्योंमुझको ऐसा लगता है?दूर कहीं कोई रोता है। 2पर्वत की हरी-भरी वादियाँ

3

कोई रोता है।

13 सितम्बर 2020
0
0
0

( 1)क्यों? मुझको ऐसा लगता है। दूर कहीं कोई रोता है।कौन है वो? मैं नही जानता। पर,मानो अपना लगता है।कहीं दूर कोई रोता है। मुझसे मेरा मन कहता है। ( 2)अक्सर अपनी तन्हाई में, ध्

4

सफर यादों का

6 अक्टूबर 2020
1
0
2

तेरा धरती से यूँ जाना, मेरा धरती में रह जाना ।अखरता है मुझे हर पल, तेरा मुझसे बिछुड़ जाना ।मेरी साँसों में तेरा नाम, मेरी धड़कन में तेरा नाम ।मेरे ख्वाबों में तू ही तू,

5

यादों की महफिल

7 फरवरी 2021
0
0
0

आओ ना बैठो ना कुछ पल ही सही साथ बिताओ ना । आप हो हम हों,बातों की महफिल हो और ठहाके हो।यादों के फूल खिले हो, और सुगंध से मन प्रफुल्लित हो ।और साथ-साथ गरमागरम चाय हो,आलू के गुटके हो।गुड़ की डली के साथ चाय की चुस्की हो,और संग हो।अपनों की संगति,

---

किताब पढ़िए