( 1)
क्यों? मुझको ऐसा लगता है।
दूर कहीं कोई रोता है।
कौन है वो? मैं नही जानता।
पर,मानो अपना लगता है।
कहीं दूर कोई रोता है।
मुझसे मेरा मन कहता है।
( 2)
अक्सर अपनी तन्हाई में,
ध्यानमग्न मैं जब भी होता।
अंतर के भावना की लहरों में,
बहता कहीं मैं दूर निकलता।
तो मुझको ,क्यों ऐसा लगता?
कहीं दूर पर कोई रोता।
( 3)
पर्वत की हरी-भरी वादियाँ,
सर्पाकार सड़क से।गुजरता।
पर एक मोड़ पर जब मैं पहूँचता।
मन कहता अब यही ठहर जा।
तब मुझको ऐसा लगता है।
मानो इस मोड़ से मेरा।
सदियों से कोई रिश्ता है।
यही कहीं कोई रोता है।
(4)
जब भी इस मोड़ पर आता।
ऐसा लगता कोई बुलाता।
गोरा रंग है,लाल अम्बर है।
शर्मिला सा वो दर्पण है।
बहुत गौर से देखता उसको।
पर मुझको ये भ्रम लगता है।
एक धुंधला चेहरा दिखता है।
ना जाने क्यों ये लगता है?
कई जन्मों का ये रिश्ता है।
क्यों ?मुझको ऐसा लगता है।
दूर कहों कोई रोता है।
(समाप्त)