(1)
वो घर से निकला पीने को,
मानो अंतिम पल जीने को।
उसे अंतिम सत्य का बोध हुआ।
मानो अंतिम घर से मोह हुआ।
सोते बच्चों को जी भर देखा,
सोती बीबी के गालों को चूमा,
माँ-बाप को छूपकर देखा,
चुपके सोते चरणों को पूजा।
कुछ पैसे जेब में डाले लिये,
भीतर से बाहर को निकला।
अंतिम दर्शन करके घर को,
वो जा पहूँचा फिर उस पथ पर,
जो जाता था मधुशाला को।।
(2)
घर से ज्यों-ज्यों वो दूर गया,
हर बंधन से फिर मुक्त हुआ।
वो आ पहूचाँ मदिरालय में,
पूजा,उसने मदिरालय को।
मदिरालय के भीतर जाकर,
आनन्दित हुआ वह मधु-रस से।
हर ,एक-एक बूँद से ,मधुरस की
जीवन का उसे आनन्द मिला।
जब तृप्त हुआ मधुशाला से,
मधुशाला से पथ पर पहूँचा।
(3)
डगमग-डगमग करता पथ पर,
पंछी सा लहराता पथ पर।
लहराते हुऐ उसे झूम पड़ी,
मदहोश हुआ, बेहोश हुआ,
और लेट गया वो मध-पथ पर।
मिट्टी में था,वो सना हुआ।
कीचड़ में था लथपथ-लथपथ।
था,गंध की मधु से महका हुआ,
मदमस्त था लेटा मध-पथ पर।
(4)
जब आँख खुली,बिस्तर में था,
जीवन की अंथिम साँसे गिनता।
थे पास में उसके घरवाले,
शर्मिंदा,लाचार और बेबस।
जीने की इच्छा लिये हुऐ,
अपनों को आशा से देखा।
(5)
साँसों का साथ था ,छूट रहा,
जीवन से रिश्ता टूट रहा।
थी मृत्यु, दुल्हन बन,पास खड़ी,
शायद उसकी थी अंतिम घड़ी।
मन,तन से था ले रहा विदा,
धरती से रिश्ता टूट रहा,
अपनों का साथ था छूट रहा।
आँखों से आँसू छलक रहे,
अपनों से जो थे बिछुड़ रहें।
(6)
वो धरती से हो रहा विदा,
जाते-जाते ये सोच रहा।
क्यों मधु से मैंने प्यार किया?
क्यों सब कुछ उस पर वार दिया?
अपनों को मैंने पीड़ा दी।
बच्चों का बचपन छीन लिया।
बीबी को प्यार था करना मुझे,
जीवन दुःखमय था मैंने किया।
माँ-बाबू का सुख-चैन लिया,
मैं काश! मधु से ना मिलता।
ना उसके रंग में ही रंगता।।
(7 )
जाते-जाते ऐ!जगवालो,
ऐ!मधु के प्यारे मतवालों ,
इतना,तुमसे ,मैं कहता हूँ।
ना मधु से इतना प्यार करों।
मधुशाला को जो जाता हो,
उस पथ पर तुम ना कभी चलों।
अपनों के संग जीवन जीओ,
अपनों को से जी भर प्यार करों।
जो धन मधु पर तुम वारते हों,
उससे घर की खुशिया ले लो।
आनन्द नही है,मधुरस में,
आनन्द तो है अपने घर में।
अब लौट चलो अपने घर को,
रिश्तों को जी भर जीने को।
(8)
मैं निकला घर से पीने को,
हाय!अंतिम पल जीने को।
क्यों निकला घर से पीने?
आह!मैं निकला घर से पीने को
(समाप्त)