18 जुलाई 2015
अर्पिता जी, आप ने ये लेख लिखा और बहुतों ने इसे पसंद भी किया और सहमति भी व्यक्त किये परन्तु एक बात मैं भी आप लोगों से साझा करना चाहूंगा कि बहुत से लोग ऐसे मिलते हैं जो की अगर किसी ऐसे घर चले जाएं जहाँ पे संमरमर नहीं लगा है तो तुरंत ही मकान के मालिक से या तो कह देते हैं या फिर उसके प्रति सोच लेते हैं कि बहुत अच्छा नहीं है, माकन मालिक उनको लाख बताना चाहे कि वो प्राकृतिक चीजो को पसंद करता है परन्तु लोग कहा मानाने वाले है. इसीलिए लोग आज-कल दूसरे लोगो के लिए अपनी पसंद बदल रहा है मकान के मामलो में.... जिससे वो प्राकृतिक आनंद से वंचित रह जा रहे हैं.
9 सितम्बर 2015
सच कहा है आपने "आनंद एक आंतरिक अनुभूति है जो प्रकृति ही प्रदान कर सकती है ..बाहरी आनंद तो वाकई क्षणिक ही होता है .. बधाई ..
19 जुलाई 2015
सही है अर्पिता जी मानव को क्षणिक नहीं प्राकृतिक आनंद की आवश्यकता है
18 जुलाई 2015
सचमुच बहुत अच्छा है
18 जुलाई 2015