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क्षणिक आनंद

18 जुलाई 2015

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किसी भी इमारत का-चाहे वह महल हो या मकान या झौंपड़ी-फर्श हो वह सीमेंट, मुजाइक,, संगममरमर, टाइल्स, पत्थर या मार्बल का हो सकता है जिसे देखने का शहरी आदमी आदी हो गया है और जिसकी वजह से लोग प्राकृतिक घास पर चलना ही भूल गये हैं। अगर कोई आदमी प्रकृति से दूर है तो वह इमारतों की चमक से अचंभित हो सकता है, खुश भी हो सकता है पर वह आनंद नहीं उठा सकता। फर्श पर चलते हुए वह आंखें नीचे देखकर उस पर चलने का सुख भले ही अनुभव करना चाहता हो पर वह क्या ऐसा कर नहीं पाता। प्रकृति से दूर होकर आदमी अगर सुख या आनंद की अनुभूति करना चाहे तो यह उसका भ्रम है। प्रश्न यह है कि सुख या आनंद है क्या? आंनद वह है जब आप किसी वस्तु की सुगंध को नाक से , रूप का आंख से और अस्त्तिव को स्पर्श से अनुभव करें। यही आनंद है। न कि यह लगे कि हमें सुख अनुभव हो रहा है पर जिसका आभास अंदर नहीं पहुंचे। हम जबरदस्ती करें कि आनंद हमें मिल रहा है तो वह क्षणिक है।
यशवन्त पटेल

यशवन्त पटेल

अर्पिता जी, आप ने ये लेख लिखा और बहुतों ने इसे पसंद भी किया और सहमति भी व्यक्त किये परन्तु एक बात मैं भी आप लोगों से साझा करना चाहूंगा कि बहुत से लोग ऐसे मिलते हैं जो की अगर किसी ऐसे घर चले जाएं जहाँ पे संमरमर नहीं लगा है तो तुरंत ही मकान के मालिक से या तो कह देते हैं या फिर उसके प्रति सोच लेते हैं कि बहुत अच्छा नहीं है, माकन मालिक उनको लाख बताना चाहे कि वो प्राकृतिक चीजो को पसंद करता है परन्तु लोग कहा मानाने वाले है. इसीलिए लोग आज-कल दूसरे लोगो के लिए अपनी पसंद बदल रहा है मकान के मामलो में.... जिससे वो प्राकृतिक आनंद से वंचित रह जा रहे हैं.

9 सितम्बर 2015

नरेंद्र जानी

नरेंद्र जानी

सच कहा है आपने "आनंद एक आंतरिक अनुभूति है जो प्रकृति ही प्रदान कर सकती है ..बाहरी आनंद तो वाकई क्षणिक ही होता है .. बधाई ..

19 जुलाई 2015

arpita

arpita

विजय जी एवं सुमित जी, टिप्पड़ी के लिए धन्यवाद |

18 जुलाई 2015

विजय कुमार शर्मा

विजय कुमार शर्मा

सही है अर्पिता जी मानव को क्षणिक नहीं प्राकृतिक आनंद की आवश्यकता है

18 जुलाई 2015

सुमित कुमार शर्मा

सुमित कुमार शर्मा

सचमुच बहुत अच्छा है

18 जुलाई 2015

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avsaad

16 जुलाई 2015
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आज के जीवन में यह एक बड़ी समस्या बन गई है | इसके पीछे मुख्य कारन है - १) दिमाग का ज़्यादा चलना और शरीर का कम , २) एकाकी जीवन व्यतीत करना, ३) एक के बाद एक प्रयासों का असफल होना, ४) किसी दुर्घटना के कारन नकारात्मक सोच में पड जाना, ५) किसी नशे में पड़के अत्यधिक असामाजिक हो जाना, इत्यादि |

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क्षणिक आनंद

18 जुलाई 2015
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किसी भी इमारत का-चाहे वह महल हो या मकान या झौंपड़ी-फर्श हो वह सीमेंट, मुजाइक,, संगममरमर, टाइल्स, पत्थर या मार्बल का हो सकता है जिसे देखने का शहरी आदमी आदी हो गया है और जिसकी वजह से लोग प्राकृतिक घास पर चलना ही भूल गये हैं। अगर कोई आदमी प्रकृति से दूर है तो वह इमारतों की चमक से अचंभित हो सकता है, खुश

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