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सुमित कुमार शर्मा के बारे में

मैं एक छात्र हुँ स्नातक किया हूँ और आगे मंजिल जहाँ ले जाय क्योंकि सब का मालिक एक है |

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सुमित कुमार शर्मा की पुस्तकें

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सुमित कुमार शर्मा के लेख

अपने सपनें

25 जुलाई 2015
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मेरे सपनो में रोज आते हो क्यों ? इस तरह मुझे सताते हो क्यों ? तुम मुझे अपना बनाते हो क्यों ? अपना बना के बेगना कर जाते हो क्यों ? इस तरह मुझे रुलाते हो क्यों ? मुझे रुला के तन्हा कर जाते हो क्यों ? तन्हाई से तन्हा हो जाते है क्यों ?

ऐ मालिक { प्राथना }

25 जुलाई 2015
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ऐ भी एक दुआ हैं मालिक से, किसी का दिल न दुखे मेरी वजह से, ऐ मालिक कर दे कुछ ऐसी इनायत मुझ पे, कि खुशियों ही मिले सब को मेरी वजह से, न कोई राह आसान चाहिए | न ही हमें कोई पहचान चाहिए | एक चीज मागते हैं मालिक से , अपनों

दोस्त बिछड़ गये दोस्ती नहीं |

25 जुलाई 2015
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बिछड़े दोस्त के याद से है मेरी जिन्दगी | उसके सुख-दुःख के ऐहसाश से है मेरी जिन्दगी उसके खुशियों में ही खुश है मेरी जिन्दगी | उसके लिए जो कुछ भी दे सकती है देदेगी मेरी जिन्दगी शीशा सा पिघलता पत्थर तो नहीं देखा | हर लम्हा गुजरता मंज़र तो नहीं देखा पढ़ ली रुख की लकीर तो क्या हुआ | दिल क्या चीज ह

वक़्त नहीं { कविता }

24 जुलाई 2015
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हर ख़ुशी हैं लोगों के दामन में पर एक हंसी के लिए वक़्त नहीं दिन रात दौड़ती दुनिया में जिन्दगी के लिए ही वक़्त नहीं माँ की लोरी का एहसास तो हैं पर माँ को माँ कहने का वक़्त नहीं सारे रिश्तों को तो हम मार चुके अब उन्हें दफ़नाने का वक़्त नहीं

तुम हो दिल के करीब दूर आँखों से

24 जुलाई 2015
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तुम हो दिल के करीब दूर आँखों से पर गये दिल में छाले तेरी यादों से जीना मुश्किल है बिन तेरे सहारो के कोई कैसे तुझे मेरे दिल से निकले चाँद तारों का नूर आप पे बरसे हर कोई आप कि चाहत को तरसे आप कि जिन्दगी में इतनी खुशियाँ आये कि आप किसी गम के लिये तरसे ख़ुदा कि रहमत सारे संसार पे बरसे मेरे

तुम्हारी ख़ुशी में ही हमारी ख़ुशी है ,

24 जुलाई 2015
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वो आके जा चुकी है पर आशक़ी वही है हम उसे खो चुकें है पर दिवानगी वही है तुम्हरे साथ गुजरा लम्हा जब भी याद आयेगा इस जनम के बाद तुम्हारा ख्याल लायेगा अगर बख्शी ऊपर वाले ने जिन्दगी बार बार तो ये हर जनम में आपका साथ चाहेगा चाहे तो दिल से हमें मिटा देना चाहे तो हमे तुम भुला देना लेकिन ये वादा करो कि

{$***आजादी के लिए वीरो ने दे दिए प्राण***$}

19 जुलाई 2015
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हमारे देश को आजादी पाने के लिए | ना जाने कितने वीरो ने अपने प्राण दे दिये | भारत माँ को जकड़े हुए जंजीर से आजाद करने के लिए | भारत माँ के उस बेटे ने हस्ते -हस्ते अपने जान दे दी | और फिर नजाने कितने माँओं ने अपने बेटे खों दी | वो माँ ऐ सोच कर नही रोती कि उनका मर गये | वल्कि ये सोच कर रोती थी कि

फर्क सिर्फ इतना

17 जुलाई 2015
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एक दिन सभी आते है इस जमीं पर एक दिन जाते है सभी इस जमीं पर से इक दिन सब जाने वाले जाएंगे कुछ अपनी सजा अपने साथ लाएंगे | वो वक़्त करीब आ पहुंचा है | अब टूट गिरेंगी वो जंजीर जिन्दिनीं की खेर नहीं जो उफाने झूम उठे है साहिलों से न तलेगें कुछ देर में ले जाने वाले ले जाएगें फूल हम पे भी होंगे जो मे

हाथों कि लक़ीर पे यक़ीन नहीं

17 जुलाई 2015
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ऐ किस्मत भी क्या अजीब खेल खेलते है | कभी हमें हँसते है तो कभी रुलाते है | हमसे ऐ इंतहाँन लेकर हमें अजमाते है | और हम इन्हें इंतहाँन दिये जाते है | उलझन के इन धागों को जीवन भर सुलझना है | किस्मत पे ऐतवार किसको है | मिल जाये ख़ुशी तो इंकार किसको है | कुछ मजबूरियाँ है जिन्दगी में यार , वरना मेरी

ख़ुशियाँ ही ख़ुशियाँ

15 जुलाई 2015
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शब्दनगरी संगठन एक ऐसा परिवार है जिसमें हम सभी मिलकर सनेह से रहते है यहाँ किसी से कोई जुदा नहीं होते है यहाँ तो हमलोग दूर हो कर भी बहुत पास होते है और हमलोग यहाँ हर वक़्त खुश ही खुश रहते है मैं ये बड़े एकिन के साथ कहता हूँ कि- हमलोगों कि तरह कोई सताये तो बता देना हमलोगों कि तरह हंसाये तो

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