यूँ तो बताने को कुछ भी नहीं क्योंकि जो भी है तुम्हें पता है और जो तुम्हें पता नहीं उन्हें तुम्हारी गैर मौजूदगी में ढूंढ़ने की कोशिश भर की है। कभी अपने भीतर, कभी तुम्हारे नाम के मायनों में तो कभी उन बातों में पाता हूँ खुद को जो हम दोनों में से किसी ने न कहे लेकिन जिन्हें दोनों ने समझा जरूर । कुल मिला कर बोलूँ तो मैं बस वही रह गया हूँ जो तुमने बना कर छोड़ दिया । एक खानाबदोश बैंकर जो जीना चाहता है फिर से वो लम्हें, लिखना चाहता है फिर से 'कुछ तुम्हारे लिए' ।